सिंहद्वार पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था, ताकि भक्तों की भीड़ में किसी भी तरह की अनहोनी न होने पाए। अगले दिन महाप्रभु को खुशबूदार आधार पना दिया जाएगा। यह आधार पना दूध से निर्मित होता है। महाप्रभु, बलभद्र और सुभद्रा का सोना वेश सोमवार को होगा। उनका यह वेश देखने के लिए लाखों लोग उमड़ते हैं।
बता दें कि जगन्नाथ महाप्रभु के सुभद्रा देवी व बलभद्र के साथ गुंडिचा से श्रीमंदिर के सामने स्थित सिंहद्धार तक पहुंचने की इस यात्रा को बाहुड़ा यात्रा यात्रा कहते है। यह यात्रा अषाढ़ शुक्ल दशमी जिसे बाहुड़ा दशमी भी कहा जाता है,वाले दिन होती है। यही बाहुड़ा यात्रा कही जाती है।
इस तरह शुरू हुई बाहुड़ा यात्रा
भारी बारिश और खराब मौसम के बाद भी आस्था का सैलाब पुरी में उमड़ पड़ा है। पवित्र रस्सों से रथ खींचने के लिए समस्त तैयारी की गई। सबसे पहले बलभद्र का रथ 1.25 बजे दोपहर को श्रीमंदिर के लिए खींचा गया। हालांकि रथ गुंडिचा से लेकर बड़दंड श्रीमंदिर तक खींचने की परंपरा अपरान्ह चार बजे शुरू होनी थी पर मौसम और बारिश के कारण यह कार्य श्रीमंदिर प्रशासन ने थोड़ा पहले शुरू कर दिया था।
मौसी के घर भोग खाने के लिए रूकें महाप्रभु
गुंडिचा मंदिर में प्रातः चार बजे मंगला आरती से महाप्रभु की रीतिनीति शुरू हुई। इसके बाद पहंडी हुई जिसमें दोपहर 12 बजे तक गुंडिचा से महप्रभु सहित बलभद्र व देवी सुभद्रा व सुदर्शन चक्र के विग्रह रथ पर रखे गए। महाप्रभु के प्रधान सेवायत गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने सोने के मूठ वाली झाड़ू से रध के रास्ते की प्रतीकात्मक सफाई की। बलभद्र का रथ 1.25 बजे गुंडिचा से रवाना किया गया जबकि देवी सुभद्रा का दो बजे। महाप्रभु रास्ते में मौसी मां के घर पर भोग खाने के लिए थोड़ी देर रुकें। जिसके बाद उनका रथ लाया गया।