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बीकानेर

बीकानेर : समरसता और अल्हड़ जीवन शैली का अटूट संगम

बीकानेर स्थापना दिवस पर विशेष
 

बीकानेरApr 24, 2020 / 08:04 pm

Atul Acharya

बीकानेर : समरसता और अल्हड़ जीवन शैली का अटूट संगम

बीकानेर : समरसता और अल्हड़ जीवन शैली का अटूट संगम

-कुमार पाल गौैतम, जिला कलक्टर, बीकानेर

कोई शहर जमीन का टुकड़ा मात्र नहीं होता, बल्कि किसी इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की जीवंत जुबान होता है। शहर की कहानी में युगों का वृत्तांत छुपा होता है और हर गली, मौहल्ले, नुक्कड़ तथा बाजारों से उन कि़स्सों की महक आती है, जो उस शहर की पहचान बने है।
बीकानेर के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सटीक है। करीब 532 सालों का इतिहास समेटे इस शहर की कहानी यहां की हवेलियों, परकोटे की दीवारों, मंदिरों की घंटियों, मस्जिदों की अजान, पाटों की चहल-पहल और यहां रहने वालों की जिदांदिली, प्रेम और सोहार्द से खुद बखुद जाहिर होती है। मेहमान नवाजी की शानदार परंपरा, समृद्ध स्थापत्य, रंग बिरंगी लोक संस्कृति के बूते समूचे हिन्दुस्तान में ही नहीं विश्वभर में बीकानेर की एक अलग पहचान है।
थार के विशाल रेगिस्तान में बसा शहर अपनी स्थापना से लेकर 21वीं सदी के दो दशक पूरे करने तक कई दौर देखे। समृद्ध परंपराओं के साथ-साथ आज आधुनिकता की आहट शहर की आबोहवा में अपनी जगह बनाती स्पष्ट रूप से नजर आ रही है। राष्ट्रीय स्तरीय अनुसंधान केंद्र, फ्लाईओवर, सड़कों के साथ विस्तार ले रहे शहर के परकोटे में सटी और संकरी गलियों में अपनी मूल संस्कृति की खनक सुनाई देती है। यही बात शहर को नजदीक से देखने के लिए पर्यटकों को खींच लाती है।
राव बीका ने 532 साल पहले रखी नींव
‘पनरे सौ पैतालवे, सुद वैशाख सुमेर। थावर बीज थरपियो, बीके बीकानेरÓ। जोधपुर के राव जोधा के पुत्र राव बीका ने विक्रम संवत् 1545 में अक्षया द्वितीया (13 अप्रेल 1488) के दिन रेतीले धोरों के बीच इस नगर की नींव रखी। तब जांगल प्रदेश के नाम से विख्यात रहे बीकानेर के पश्चिमी क्षेत्र कोलायत में सरस्वती नदी का प्रवाह स्थल भी माना जाता था। जो कालांतर में विलुप्त हो गई। रियासतकाल में यहां अनेक राजाओं ने शासन किया। आजादी के बाद यहां के शासक सार्दुल सिंह के समय बीकानेर का विलय राजस्थान में हो गया।
समृद्ध विरासत की बानगी है जीवनशैली

यहां के लोगों की अलहड़ जीवन शैली के चलते यह अलमस्त शहर के तौर पर जाना जाता है। यहां की खूबसूरती केवल पत्थरों सेे नहीं झलकती, बल्कि लोक संस्कृति में बिखरे अनगिनत रंग कुछ अलहदा सा अंदाज देते हैं।
समरसता की मिसाल
सांप्रदायिक सौहार्द को समेटे एेसा शहर पूरी दुनिया में शायद ही कोई होगा। परकोटे के भीतर हर धर्म, जाति, मजहब के लोग प्रेम और समरसता के साथ सदियों से रहते आए हैं। ऐसी कोई दूसरी मिसाल मिलना दुर्लभ ही होगा। सभी मजहबों के लोग एक साथ मिलकर पतंगबाजी करते हैं। घरों में इमली का पना (इमलानी) गेहूं, बाजरी, मूंग व मोठ का खीचड़ा, चार फोल्ड के फुल्के (रोटिया) और हरी पत्तियों की चंदलिए की सब्जी बनाकर चाव से खाते हैं।
विस्तार लेती नगर की सीमाएं

प्राचीन शहर परकोटे के अंदर बसा है, रियासत के राजाओं ने शहर की रक्षा के लिए परकोटा बनवाया था। परकोटे में पांच दरवाजे व आठ बारियां हैं। शहर के हृदय स्थल पर लाल पत्थर से निर्मित कोटगेट के तीन दरवाजों का स्वरूप ज्यों का त्यों है। समय के साथ शहर की आबादी बढ़ी और बाहरी इलाकों में नई कॉलोनियां बस गई। शहर के लोगों की बसावट से यहां समृद्ध परम्पराएं बाहरी इलाकों में भी प्रतिष्ठित हुई हैं। उप नगर गंगाशहर, भीनासर, करमीसर को नगर निगम के क्षेत्र में मिलाने से शहर का क्षेत्रफल चैगुना हो गया।
आर्थिक संभावनाओं के खुले द्वार
बीकानेर के आर्थिक परिदृश्य ने भी देश में अलग पहचान बनाई है। यहां के पापड़ व भुजिया, रसगुल्ला का स्वाद देश-विदेश में पहुंचता है। सौर ऊर्जा, होलसेल व्यावसायिक गतिविधियां, एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट्स और पर्यटन उद्योग आर्थिक संभावनाओं के नए क्षेत्र है। भूगर्भ में लिग्नाइट, कोयला, जिप्सम के भंडार हैं। कोलायत क्षेत्र सिलिका सेंड, बॉल क्ले, बजरी, और चूना पत्थर पोटाश, दुलमेरा पत्थर, सेंड स्टोन के मुख्य निर्यात सेंटर के रूप में विकसित हो रहा है। यहां बने ऊनी गलीचे, कंबल, शॉल, सूती कपड़े और रंगाई भी देश भर में प्रसिद्ध है।

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