तीन धड़ों में बंटे कांग्रेसी पार्षदनगर निगम में कांग्रेस पार्षद तीन धड़ों में बंटे हुए है। एक धड़ा नेता प्रतिपक्ष का है। दूसरे धड़े में कई वरिष्ठ पार्षद है, जबकि तीसरे में ऐसे पार्षद है, जो दोनों धड़ों में खुद को असहज महसूस करते है। निगम के वर्तमान बोर्ड में कई ऐसे अवसर आए है, जब पार्षदों की धड़ेबंदी, बयानबाजी सार्वजनिक रूप से सामने आई है।
नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बनी कारण
नगर निगम के वर्तमान बोर्ड के अब तक के कार्यकाल में कांग्रेस पार्षद धड़ेबंदी में ही उलझे हुए है। इसी वजह से लम्बे समय तक नेता प्रतिपक्ष की घोषणा अटकी रही। जब चेतना चौधरी को को यह जिम्मेदारी सौंपी गई तो धड़ेबंदी खुलकर सामने आ गई। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद निगम महापौर और अधिकारियों की खींचतान में विपक्ष एकजुट होकर एक तरफ नहीं हो पाता।
प्रदेश नेतृत्व भी नहीं रहा गंभीर
नगर निगम में कांग्रेस पार्षदों की धड़ेबंदी और निगम में अधिकारी बनाम महापौर के हालात को लेकर कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी गंभीर नहीं दिखा। स्थानीय विधायक, मंत्री और पार्टी पदाधिकारी भी यहां पदस्थापित अधिकारी को ढाल बनाते है। वह पार्षदों को एकजुट कर निगम में ताकत जुटाने के लिए प्रयास नहीं करते।
जनता भुगत रही खमियाजा
नगर निगम में विपक्ष की कमजोरी का खमियाजा शहर की जनता को भुगतना पड़ रहा है। बजट बैठक और निगम की आमसभा जनता के मुद्दे शोर शराबे में दबकर रह जाते है। 41 महीनों से जनता जनसमस्याओं से जूझ रही है। सफाई से लेकर सीवरेज तक, सड़क निर्माण से लेकर नाली निर्माण तक, निगम दफ्तर में जनता के काम अटकने से लेकर कार्यालय में निगम व अधिकारियों के टकराव तक से जनता परेशान है।
हर मोर्चे पर विपक्ष विफल
नगर निगम में विपक्ष के नाते कांग्रेस आमजन के किसी भी मुद्दे को लेकर सड़क पर लड़ाई लड़ने नहीं उतरी है। भाजपा महापौर को दो बार धारा 39 के तहत नोटिस जारी होने, शहर में बिगड़ी कचरा परिवहन व्यवस्था, बदहाल सीवरेज, बेसहारा पशु, रोड लाइटों की कमी, आमजन के पट्टे नहीं बनने, बार-बार टेंडर निरस्त, महापौर का आयुक्त व सचिव से विवाद, थाने में एफआईआर दर्ज होने समेत कई ऐसे मौके आए जब विपक्ष अपने कर्तव्य को पूरा नहीं कर पाया है।