अभिलेखागार में मध्यकाल और आधुनिक काल के करीब 30 से 40 करोड़ दस्तावेज उपलब्ध हैं। बाईस रियासतों की अनेक बोलियों जैसे मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, बागड़ी, मेवाड़ी इत्यादि में ये दस्तावेज मौजूद हैं, जो अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए हैं। लेकिन लिपि पठनीय नहीं होने के कारण बहुत से ऐतिहासिक तथ्य हमारे सामने नहीं आ पा रहे थे। महज डेढ़ करोड़ दस्तावेजों को ही अब तक हिन्दी में रूपांतरित किया जा सका है। मारवाड़ी फॉन्ट विकसित होने से इन दस्तावेजों को स्कैन करके कुछ ही क्षणों में इन्हें हिन्दी में बदला जा सकेगा।
क्या समस्या थी मारवाड़ी फॉन्ट विकसित करने में जयपुर में ढूंढाड़ी, कोटा में हाडौती, जोधपुर व बीकानेर में मारवाड़ी, चित्तोडगढ़ व उदयपुर में मेवाड़ी , डंूगरपुर में बागड़ी बोली जाती है। इन सब बोलियों में लिखने और बोलने में भारी फर्क है। इन सब को मिला कर पहले एक बारहखड़ी तैयार की गई। इसके बाद अलग-अलग शब्दों को एक रूप देकर एक अक्षर या फॉन्ट का रूप दिया गया। उदाहरण के तौर पर बीकानेर और जोधपुर में काफी समानता होने के बावजूद ख को पांच- सात तरीकों से लिखा जाता है। इन सब को मिला कर एक ख बनाना आसान काम नहीं था। मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के बावजूद यह काम नहीं हो पा रहा था। अब भी सिर्फ शुरुआती तौर पर बीकानेरी और जोधपुरी की लिखावट का अध्ययन कर इनके कॉमन फॉन्ट तैयार किए जा रहे हैं। बाद में अन्य बोलियों का भी इसमें समावेश किया जाएगा।
ये होगा फायदा होगा मारवाड़ी को भाषा का दर्जा देने की मांग दशकों से हो रही है। लेकिन लिपि देवनागरी होने के बावजूद लिखावट का तरीका पठनीय नहीं है। जिससे व्याकरण और साहित्य का अध्ययन और अध्यापन ठीक से नहीं हो पा रहा था। फॉन्ट बनने से अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर भाषा को मान्यता मिलती है। ऐतिहासिक तथ्य सामने आने से अनेक भ्रांतियों का निवारण हो सकेगा। रिसर्च और स्कालर बढ़ेंगे जिससे मारवाड़ी समृद्ध होगी। राजस्थान से जुड़े इतिहास की परते खुलेंगी। कई अनछुए, ऐतिहासिक पहलू सामने आएंगे। मारवाडी प्रमाणित और प्रासंगिक होगी। भाषा का दर्जा पाने में आसानी होगी।
– डा. महेन्द्र खडग़ावत निदेशक, राज्य अभिलेखागार, बीकानेर