कोरोना के घातक संक्रमण के कारण इससे हर कोई डरा और सहमा हुआ है। कोरोना का संक्रमण अब तक वायरसों में से अत्यधिक सुक्ष्म और खतरनाक होने के कारण तेजी से फैलता है। पीबीएम में चिकित्सकों की कतार लगी लग रही है। चिकित्सकों के घरों पर सुरक्षा के पुख्ता बंदोबश्त किए गए हैं। चिकित्सक तक मरीज पहुंच ही नहीं पा रहे। मोटी-सी फीस देकर भी मरीज स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
चिकित्सकों ने पिछले पांच महीनों में मरीजों को देखने की तकनीक में बदलाव किया है, इससे मरीजों पर आर्थिक भार बढ़ गया है। मरीज और चिकित्सक के बीच दूरी बढ़ गई है। सुरक्षा कारणों से चिकित्सक मरीज के नजदीक तक नहीं आ रहे। घर में इतने सुरक्षा बंदोबश्त कि मरीजों को महसूस नहीं होता कि वह दिखाने आए है या रेलवे या बस स्टैंड की आरक्षण खिड़की पर टिकट बुक कराने आए हैं। मरीजों को दूर से देखकर रुक्के (पर्ची) पर १० से १५ तरह की जांचें लिखकर दे देना। सामान्य बीमारी में भी तीन से चार हजार रुपए जांचों में खर्च हो रहा है। चिकित्सक की फीस व दवा का खर्च अलग है।
मरीज और चिकित्सक दोनों के लिए समय की जरूरत
एक वरिष्ठ चिकित्सक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कोरोना में चिकित्सक और मरीज के बीच की दूसरी समय की जरूरत है जो मरीज और चिकित्सक दोनों के हित में है। चिकित्सक को मरीजों का इलाज करना जरूरी है और सही इलाज के लिए बीमारी को पकडऩा। ऐसे में जांचें करना भी चिकित्सक की ड्यूटी में हैं। चिकित्सक की ओर से कराई जाने वाली जांचें कभी बेवजह नहीं होती। जांचों के बाद मरीज का इलाज करने में सहूलियत होती है।
इनका कहना है…
चिकित्सकों ने जांच का तरीका बदला, व्यवस्थाएं बदली नहीं बदला तो अपना व्यवहार। आज भी कई चिकित्सकों का व्यवहार मरीजों के प्रति नरम नहीं बेरुखा है। चिकित्सकों के घर मरीजों की लंबी लाइनें लग रही है। मरीज अब पहले से ज्यादा ठगे जा रहे हैं। मरीजों पर जांचों का भार दोगुना हो गया है। चिकित्सक मरीज के लिए जांचें जरूरी करना कहकर अपना बचाव कर लेते हैं लेकिन मरीज मर्ज और दर्द दोनों से बचाव नहीं कर पा रहे हैं।
गणेश वीर, चिकित्सक पेशे से जुड़े