उन्होंने कहा कि देखना, समझना और अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर पाना शिक्षा का बेहद जरुरी आयाम है। शब्दों की संगत के ये संस्कार पढऩे-लिखने की संस्कृति को विकसित करेंगे। शिक्षक नेता रतीराम सारण ने कहा कि पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अध्ययन के साथ सह शैक्षिक गतिविधियों निरंतर सहभागिता बेहद ज़रूरी है।
चकजोड़ प्रधानाध्यापक उमरावसिंह यादव ने कहा कि ग्रामीण अंचल के विद्यार्थियों में बहुत प्रतिभा है उसे उचित मार्गदर्शन व मंच प्रदान करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कार्यवाहक प्रधानाचार्य मोहनलाल पूनिया ने कहा कि तकनीक के इस युग में बाल मन को सर्जनात्मकता की ओर उन्मुख करना एक बड़ी चुनौती है। शिक्षक व अभिभावक विद्यार्थी में छिपी नैसर्गिक प्रतिभा को पहचान कर उसे विकसित होने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकते है।
कार्यक्रम में पत्रिका संयोजक रामवीर रैबारी, शारीरिक शिक्षक राधेश्याम मीणा, राउप्रावि घेसूरा के प्रधानाध्यापक राजेंद्र सिंह ढाका, शिक्षक बलबीर गोदारा, बलराम सिहाग, पूर्णचंद आदि ने विचार प्रकट किए। इस अवसर पर भित्ति पत्रिका में योगदान करने वाले रचनाधर्मी विद्यार्थियों का सम्मान भी किया गया। मंच संयोजन राधेश्याम ने किया।