प्रतिमाओं के समक्ष विविध व्यंजनों के भोग अर्पित किए जा रहे है। धुलंडी के दिन से गणगौर पूजन कर रही बालिकाएं अब गणगौर गोठ के आयोजन कर रही है। गोठ में जहां विविध पकवान तैयार किए जा रहे है, वहीं हंसी-ठिठोली के साथ आनंद का वातावरण बना हुआ है। बालिकाएं मां गवरजा को अपनी बहन तथा ईसर जी को जीजा मानते हुए पूजन करती है। गणगौर पूजन के दौरान ईसर जी की मान मनुहार चल रही है।
विविध व्यंजनों का भोग अर्पित करने के बाद कोल्ड ड्रिंक्स, आईसक्रीम अर्पित किए जा रहे है। ईसर जी को पान भी अर्पित किया जा रहा है। बालिकाएं ईसर और गवर की प्रतिमाओं का पारम्परिक वस्त्रों और आभूषणों से श्रृंगार भी कर रही है।
गीतों से मनुहार, श्रृंगार का वर्णन
बालिकाएं गणगौर पूजन के दौरान पारम्परिक गणगौरी गीतों का गायन भी कर रही है। पारम्परिक गीतों के साथ फिल्मी गीतों पर जोड़ी गई पैरोडी के माध्यम से ईसर जी की मनुहार कर रही है और हंसी ठिठोली भी। बालिकाएं गीतों के माध्यम से गवर के सोलह श्रृंगार का वर्णन भी कर रही है। बालिकाओं की ओर से किए जा रहे मां गवरजा के पूजन में महिलाएं भी शरीक हो रही है। तीन पहर हो रहे पूजन में घर-परिवार के पुरुष सदस्य भी बालिकाओं के पूजन उत्सव में सहभागी बनकर सहयोग कर रहे है। अलसुबह घरों की छतों पर गवर का पूजन, दोपहर बाद दांतणिया देने और शाम को घुड़ला घुमाने के बाद देर रात तक गवर का बासा देने का क्रम चल रहा है।