शुष्क बागवानी संस्थान के बगीचे में खड़े खजूर के प्रत्येक पेड़ से औसत ६० से ८० किलो खजूर निकल जाते है।
हालांकि उत्पादन इससे दो गुणा होता है। परन्तु बारिश आदि के मौसम में फल खराब हो जाते है। यहां पैदा होने वाले खजूर का फल मिश्री सा मीठा है। जो अरब देशों से देश में आयात होकर भी आता है। रेतीले धोरों वाले इस इलाके में भविष्य में इन खजूरों की बागवानी होने का विकल्प खुला है।
खजूर के उत्पादन के हिसाब से इनकी रेट तय होते है। संस्थान में यह खजूर 30 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिलती है। वही साफ करने के बाद डिब्बे में बंद खजूर 50 रुपए प्रति डिब्बे के रेट पर मिलते है। मुख्य सड़कों पर भी खजूर के ठेले लगते है। जहां भी लोग खरीदारी करते है।
खजूर में नर-मादा पौधे अलग-अलग होते है। इसलिए खजूर की खेती करते समय 5 से 10 प्रतिशत नर पौधे लगाने भी आवश्यक होते है। प्रमुख नर पौधों में घनामी व एल-एन-सीटी है। नर पौधों की अनुपस्थिति में फ ल नहीं होंगे। खजूर में हाथ से परागण करवाना पड़ता है।
मेडजूल, हलावी, बरही, खुनेजी, खलास, जाहिदी मुनाफे की खेती
खजूर की खेती सिंचित क्षेत्र में एक लाभदायक साबित होती है। ताजा फल के रूप में इसका विपणन करने से अच्छा लाभ मिलता है। आवश्यकता इस बात की है कि फल तोडऩे के बाद सफाई कर हवादार डिब्बे में पैकिंग कर विक्रय किया जाए। एेसा करने से ज्यादा लाभ मिलता है।
-प्रो. पीएल सरोज, निदेशक केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान बीकानेर