पीबीएम अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के नशा मुक्ति केन्द्र में हर माह २० से २२ नशे के आदी युवाओं का भर्ती कर इलाज किया जाता है। पीबीएम के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०१८ में १०६, २०१९ में ११२ और वर्ष २०२० में अब तक ५८ नशेडिय़ों का इलाज किया जा चुका है। इस लिहाज से हर माह नशे के आदी लोगों की भर्ती संख्या बढ़ रही है। यही हाल पुलिस विभाग के आंकड़े बयां करते हैं। पुलिस ने वर्ष २०१८ में अगस्त तक २५, वर्ष २०१९ में ५७ और वर्ष २०२० में अगस्त तक ७६ कार्रवाई की गई है। यह बड़ी चिंता वाली बात है कि मादक पदार्थ की तस्करी के मामले पकड़े जा रहे हैं। हर साल मादक पदार्थों के साथ सप्लायर पकड़े जाते हैं लेकिन मुख्य सरगना हाथ नहीं लगता। इसी कारण मादक पदार्थों की तस्करी रुक नहीं रही।
नशा करने वाले ३० वर्ष तक के अधिक
नशा करने वालों का ग्राफ भी चौकान्ने वाला है। नशे के आदी युवा वर्ग ज्यादा हो रहे हैं। इनमें २० से ३० वर्ष के युवा ज्यादा है। हैरानी की बात यह पिछले चार-पांच साल से दर्द निवारक गोलियां, ट्रोमाडोल एवं इंजेक्शन का नशा बढ़ा है। इन नशे के आदी युवा बिना दर्द निवारक दवा लिए खुद को बेचैन महसूस करता है। नशा की आपूर्ति के लिए वह चोरी, छीनाझपटी जैसे छोटे-मोटे अपराध करने लगता है।
इन दवाओं का हो रहा नशा करने में उपयोग
वर्तमान परिस्थितियों में धनाढ्य, मध्यम वर्गीय और गरीब सभी तरह के परिवार के युवा नशे की गिरफ्त में हैं। यह युवा तनाव, बेरोजगारी, पैसों की कमी या फिर जीवन में आनंद उठाने के लिए नशे का उपयोग करते हैं। इसके लिए एल्को-१ टेबलेट, सीरप में खांसी की दवाइयां बेनाड्रिल, कोरेक्स व एलोपैथिक दवाएं जिन्हें असंतुलित मात्रा में ग्रहण कर मस्त हो जाते हैं, जिससे इनका तनाव कम होता है। इस तरह के नशे को करने वाले की पहचान आसानी से नहीं हो पाती है, जिस तरह से शराब पीने वालों की पहचान हो जाती है। इसलिए नशा करने वाले युवा मेडिकेटेड नशे की ओर खिंच रहा है। छोटी-बड़ी जगहों में मेडिकल वाले आसानी से अपने ग्राहकों को यह नशा उपलब्ध कराते हैं। नशे की यह दवाइंया आसानी से मिलने की वजह से ही इनका इस्तेमाल बढ़ा है। डॉक्टर की पर्ची के बिना न दी जाने वाली यह दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर बिना डॉक्टर के पर्चे के मिल जाती है। इतना ही नहीं पिछले तीन-चार साल से कोकीन, हेरोइन, गांजा, चरस का भी नशा करने लगे हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में धनाढ्य, मध्यम वर्गीय और गरीब सभी तरह के परिवार के युवा नशे की गिरफ्त में हैं। यह युवा तनाव, बेरोजगारी, पैसों की कमी या फिर जीवन में आनंद उठाने के लिए नशे का उपयोग करते हैं। इसके लिए एल्को-१ टेबलेट, सीरप में खांसी की दवाइयां बेनाड्रिल, कोरेक्स व एलोपैथिक दवाएं जिन्हें असंतुलित मात्रा में ग्रहण कर मस्त हो जाते हैं, जिससे इनका तनाव कम होता है। इस तरह के नशे को करने वाले की पहचान आसानी से नहीं हो पाती है, जिस तरह से शराब पीने वालों की पहचान हो जाती है। इसलिए नशा करने वाले युवा मेडिकेटेड नशे की ओर खिंच रहा है। छोटी-बड़ी जगहों में मेडिकल वाले आसानी से अपने ग्राहकों को यह नशा उपलब्ध कराते हैं। नशे की यह दवाइंया आसानी से मिलने की वजह से ही इनका इस्तेमाल बढ़ा है। डॉक्टर की पर्ची के बिना न दी जाने वाली यह दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर बिना डॉक्टर के पर्चे के मिल जाती है। इतना ही नहीं पिछले तीन-चार साल से कोकीन, हेरोइन, गांजा, चरस का भी नशा करने लगे हैं।
नशे के दुष्प्रभाव
नशा करने की शुरुआत होने पर तो दुष्प्रभाव समझ नहीं आता है, न ही पहचान हो पाती है। लेकिन लगातार नशा करने से कुछ असामान्य लक्षण सामने आते हैं। हर प्रकार के नशे के अलग-अलग दुष्प्रभाव होते हैं, ज्यादातर मरीजों में चिड़चिड़ाना, हकलाना, लोगों में अरुचि उत्पन्न होना, अध्ययन के प्रति विरक्ति, याददाश्त कमजोर होना, बात बात पर क्रोधित होना, रक्तचाप में असामान्य वृद्धि, अंगों का कंपकंपाना, नशा न लेने की स्थिति में बेचैनी बढऩा, हिंसात्मक व्यवहार, बहकी-बहकी बातें करना, नजरों का कमजोर होना, आंखों से आंसू आना, नाक बहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
नशा करने की शुरुआत होने पर तो दुष्प्रभाव समझ नहीं आता है, न ही पहचान हो पाती है। लेकिन लगातार नशा करने से कुछ असामान्य लक्षण सामने आते हैं। हर प्रकार के नशे के अलग-अलग दुष्प्रभाव होते हैं, ज्यादातर मरीजों में चिड़चिड़ाना, हकलाना, लोगों में अरुचि उत्पन्न होना, अध्ययन के प्रति विरक्ति, याददाश्त कमजोर होना, बात बात पर क्रोधित होना, रक्तचाप में असामान्य वृद्धि, अंगों का कंपकंपाना, नशा न लेने की स्थिति में बेचैनी बढऩा, हिंसात्मक व्यवहार, बहकी-बहकी बातें करना, नजरों का कमजोर होना, आंखों से आंसू आना, नाक बहना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
झिझके नहीं, इलाज करवाएं किसी व्यक्ति को नशे की लत लग गई तो इलाज कराने से झिझके नहीं। नशा मुक्ति केन्द्रों पर मरीज का नाम गोपनीय रखकर इलाज किया जाता है। नशे के आदी व्यक्ति को तिरस्कार नहीं सहयोग देकर नशे की गिरफ्त से बाहर लाया जा सकता है। पीबीएम में हर माह २० से २२ लोगों को नशा छुड़ाने के लिए भर्ती कर इलाज किया जाता है।
डॉ. श्रीगोपाल गोयल, मनोरोग विशेषज्ञ पीबीएम अस्पताल
अब तक ७६ कार्रवाई
मादक पदार्थ तस्करी के खिलाफ सालभर कार्रवाई की जाती है लेकिन कभी-कभार विशेष अभियान चलाकर भी कार्रवाई करते हैं। बड़ी संख्या में मादक पदार्थ के साथ आरोपी पकड़े जाते हैं। इस साल ७६ कार्रवाई की जा चुकी हैं।
पवन कुमार मीणा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर
मादक पदार्थ तस्करी के खिलाफ सालभर कार्रवाई की जाती है लेकिन कभी-कभार विशेष अभियान चलाकर भी कार्रवाई करते हैं। बड़ी संख्या में मादक पदार्थ के साथ आरोपी पकड़े जाते हैं। इस साल ७६ कार्रवाई की जा चुकी हैं।
पवन कुमार मीणा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शहर