प्रवासी पक्षी अक्टूबर में यहां आते हैं और करीब छह माह तक प्रवास करते हैं। मार्च के अंतिम सप्ताह तक सभी प्रवासी पक्षी यहां से चले जाएंगे। प्रवासी पक्षी यहां तीन रास्तों से जाएंगे। पहला रास्ता पाकिस्तान, कजाकिस्तान, उज्केबिस्तान से रूस तक, दूसरा रास्ता राजस्थान, दिल्ली, नेपाल, चीन होकर मंगोलिया तक तथा तीसरा रास्ता राजस्थान, गुजरात, ओमान, अफ्रीका तक जाते हैं।
ब्लेकहेडेड, लिटिल फ्लोवर, स्पूनविल, फॉरमेंट, कॉमनकूट, कॉमनटेल, पोचार्ड, सावलर, सेलटक, स्टेपी इग्ल, सिकारा, डारटर, इंडियन स्कीमथ, वारडर्स आदि प्रजातियों के पक्षी यहां प्रवास के लिए आते हैं। इनमें 700 यूरेशियन ग्रीफॉन, 225 हिमालियन ग्रीफॉन, 25 से 30 सिनेरियस वल्चर, 350 स्टेपी ईगल अभी यहीं हैं।
यहां प्रवास के दौरान विलुप्त प्राय: प्रजातियां भी आती हैं। इनमें ग्रीन कॉरशर, सोशेबल लेपविंग, इंडियन वल्चर, किंग वल्चर, वाइटरंपड वल्चर, लॉगलेप बजर्ड, इस्टन इम्पीरियल ईगल, ब्लैकविंग स्टिल्ड, पेलिकन, बारहेडेड ग्रुज, पिन्टेल, बोडवेल आदि हैं।
डॉ. दाउलाल बोहरा, पक्षी विशेषज्ञ
डॉ. अनिलकुमार छंगाणी, विभागाध्यक्ष, पर्यावरण विज्ञान एमजीएसयू