गौरतलब है कि उन्हें यह पुरस्कार फ्रांस के प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित कृति ला प्लुस सक्रेत मेमुआर देस होम की आलोचना के लिए मिला है। इस पुरस्कार की दौड़ में 37 देशों के भाषाविदों ने अपने आलेख प्रस्तुत किए थे। लेकिन पुरस्कार की जूरी ने लोकेश बिश्नोई के आलेख का इस पुरस्कार के लिए चयन किया।
इस उपलब्धि के साथ एक और उपलब्धि यह भी जुड़ गई है कि लोकेश बिश्नोई इस साल नवम्बर में पेरिस में होने वाले गोनकूर साहित्य पुरस्कार वितरण समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। इससे पहले वे इस साल हुए गोनकूर चॉइस ऑफ इण्डिया पुरस्कार की जूरी के सदस्य भी रहे है।
ढाणी पाण्डूसर गांव के लोकेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा राजस्थान से लेने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के प्रसिद्ध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा केन्द्र में प्रवेश लेकर फ्रांसिसी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया। उन्होंने स्नातक व स्नातकोतर की पढ़ाई जेएनयू दिल्ली से ही की।
उनका पीएचडी में चयन जेएनयू और हैदराबाद के इफ्लू में हुआ, लेकिन आगे पीएचडी में नवाचार करने के लिए उन्होंने हैदराबाद के अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (इफ्लू) को चुना। देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं में उनके आलेख प्रकाशित होते रहे है। वर्तमान में लोकेश हैदराबाद में फ्रांसिसी भाषा और साहित्य में पीएचडी कर रहे है।