वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट तथा वन अधिकारी योगेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि इस उल्लू के दो मॉर्फ होते हैं भूरा तथा रूफस। इसके सिर के दोनों तरफ कलंगीनुमा गुच्छे तथा चेहरे पर गहरी पंखों की डिस्क से पहचान होती है। इस उल्लू को कौओं ने घायल कर दिया गया था। जिसे वन मंडल छत्तरगढ़ में रेस्क्यू किया गया। यह उल्लू रात्रि समय में मेंढक जैसी आवाज निकालता है। अत्यधिक शर्मिला होने से दिन में देखना दुर्लभ है। अंधविश्वासों के चलते लोग इसका शिकार भी करते है।
सामान्यतः रेगिस्तान वनस्पतियों खेतों में बगीचों तथा घनी पत्ते वाले पेड़ों के झुंड में रहना पसंद करता है। इस उल्लू का रंग रूप इस प्रकार का होता है कि यह पेड़ों तथा वनस्पतियों के बीच आसानी से दिखाई नहीं देता है। यह एक मांसाहारी जीव है जो मुख्यतः कीड़े मकोड़े टिड्डे, कीट-पतंगे, तितलियां, छोटी चिड़िया, छिपकली, चूहे आदि खाता है।
वर्तमान में आईयूसीएन की रेड डाटा सूची में यह संकट मुक्त (Least Concern) श्रेणी में शामिल है लेकिन अंधविश्वासों के चलते इसका शिकार किया जाता है।