कृषि वैज्ञानिक डॉ. इंद्र मोहन वर्मा के मुताबिक खेजड़ी के वृक्ष पर सांगरी से पहले उसके फूल यानी मिंजर के पनपने के लिए करीब 40 से 42 डिग्री के तापमान की आवश्यकता होती है। इस बार कम तापमान रहने से खेजड़ी के पेड़ों पर फूल ही नहीं पनपे। पेड़ मॉल फॉर्मेशन के शिकार हो गए और कीड़े लग गए। ज्यादातर पेड़ों पर गिरवड़े यानी गांठे पड़ गईं, तो कुछ पेड़ हरे भरे जरूर दिखते हैं, लेकिन सांगरी और गांठे दोनों ही नहीं हैं। इसके चलते राजस्थान के कई जिलों में सांगरी तोड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले निराश है।
सांगरी तोडऩे का काम आजीविका के राजस्थान स्टेट वर्क के नाम से भी मशहूर है, लेकिन मौसम के बदलाव ने बीकानेर ,फलोदी ,जैसलमेर ,नागौर, जोधपुर, सीकर ,झुंझुनूं जैसे सांगरी उत्पादन के जिलों में इस पर निर्भर लोगों की रोजी-रोटी ठप्प हो गई है। इन जिलों से होकर सड़क या रेल मार्ग से आवागमन करने वाले लोग और पर्यटक भी यहां से सांगरी खरीद कर ले जाते है। खासकर सड़क किनारे ढेरी लगाकर सांगरी बेचने का यहां खूब चलन है। इस बार यह नजारे मुख्य मार्गों से गायब हैं। कुछ दशक पहले तक गरीब और किसान की थाली में रही सांगरी की सब्जी अब पांच सितारा होटल और उच्च वर्ग में स्टेट्स सिबल वाली सब्जी बन चुकी है। बाजार में सांगरी के भाव बादाम काजू जैसे ड्राई- फ्रूटस से ज्यादा है।
यूं तो सांगरी की सब्जी कई तरीके से बनाई जाती सांगरी। सांगरी का अचार भी देश-विदेश में बड़े चाव से खाया जाता है । सांगरी के उत्पादन के अभाव में इस बार शौकीन लोगों को बाजार में सांगरी काफी महंगी मिलेगी। सांगरी के सामान्य भाव 600 से 1200 प्रति किलो हैं जो कि आम आदमी की पहुंच से पहले ही बाहर हैं। वैसे भी आम आदमी सांगरी की सब्जी पारंपरिक वार- त्यौहार पर ही करने की हिमत कर पाता है।
बीकानेर में भी दो से ढाई टन सांगरी बाजार पहुंचती है। बीकानेर में खाजूवाला, नोखा , डूंगरगढ़ , लूणकरनसर मुख्य रूप से सांगरी उत्पादन के क्षेत्र हैं। जोधपुर, सीकर ,झुंझुनूं आदि जिलों में भी सांगरी का उत्पादन होता है।