अस्पताल संख्या
पीबीएम ६०००
जिला औषधी भंडार २५००
जिला पीएचसी ५३
सीएचसी १६
पीडि़त ये प्राथमिक उपचार करते हैं
मोरपंख या नीम बांधते हैं।
धर्म का धागा (तांती) बांधते हैं।
सभी धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।
घी पीकर पहुंचते हैं, जो नुकसान करता है।
सर्पदंश पीडि़त का अस्पताल में डब्ल्यूसीटी (हॉल ब्लड क्लोटिंग टाइम) जांच की जाती है। पीडि़त का खून लेकर एक शीशी में डाला जाता है। यदि तीस मिनट में खून जम जाए तो पता चलता है कि पीडि़त पर सांप के जहर का असर नहीं हुआ और एंटी वेनम इंजेक्शन की जरूरत नहीं है।
लगाए जाते हैं।
भारत में सांपों की करीब ३१६ प्रजातियां पाई जाती है। इनमें नौ ज्यादा विषैली हैं। इनमें भी ५ प्रजातियां सर्वाधिक विषैली होती हैं। दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान में तीन जहरीली प्रजातियां पाई जाती हैं। ये बांडी,
पीवणा या कोजकी एवं कोबरा है।
सर्पदंश शोधकर्ता डॉ. पीडी तंवर बताते हैं कि सर्पदंश के पीडि़तों पर पीबीएम अस्पताल में किए गए शोध में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। शोध में पाया गया कि सर्पदंश के शिकार व्यक्ति चार प्राथमिक उपचार करते हैं। उन्होंने कहा कि सांप ऊष्णतापी होते हैं। २८ डिग्री सेल्सियस तापमान तक ही सहज रहते हैं। इससे अधिक तापमान पर वे विचलित होने लगते हैं। सांप में ताप नियंत्रण एक्टिविटी नहीं होती। इसलिए वे गर्मी में ठंडे और सर्दी में गर्म स्थान पर रहना पसंद करते हैं।
सर्पदंश के दौरान काम में ली जाने वाली एंटी वेनम जिले के पीएचसी व सभी सीएचसी पर उपलब्ध है। चिकित्सा अधिकारियों की डिमांड के अनुसार और भेज दी जाएगी। फिलहाल पीएचसी, सीएचसी व भंडार समेत करीब चार हजार एंटी वेनम उपलब्ध हैं।
डॉ. नवलकिशोर गुप्ता, प्रभारी जिला, औषधि भंडार
इलाज की थीम ‘राइट’
डॉ. तंवर ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने सर्पदंश के इलाज संबंधी एक थीम जारी की है, जिसे आरआईजीएचटी (राइट) कहा गया है। राइट के पांच अंग्रेजी शब्दों में सांप के काटने के इलाज की जानकारी दी है।
यूं समझे
आर : मरीज को घबराने नहीं दें।
आई : सांप ने जिस अंग पर काटा है, उसे हिलने नहीं दें।
जीएच : पीडि़त तुरंत अस्पताल पहुंचाएं।
टी : चिकित्सक को सांप काटने से अस्पताल पहुंचने के दौराने होने वाले सभी लक्षण उल्टी, पेशाब में खून, श्वांस में दिक्कत आदि बताएं।