पांच साल से कौवों को खिला रही दाना
लाखुसर ग्राम पंचायत में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत संतोष का पक्षियों से प्रेम पिछले पांच साल से चल रहा है लेकिन लाखुसर में आठ माह में कौवों से इतना प्रेम हो गया कि वह जब सुबह नौ-पौने नौ बजे ऑफिस पहुंचती है तो कौवों की कांव-कांव से पूरा परिसर गुंज जाता है। कौवें उन्हें घेर कर खड़े हो जाते हैं। इतना ही नहीं कौवें उनके हाथ, सिर व कंधों पर बैठ जाते हैं। भील बताती है कि वह पिछले पांच साल से कौवों सहित अन्य पक्षियों को दाना डालती है। वह जहां भी पदस्थापित रही वहां पक्षियों को दाना डालनी कभी नहीं भूली। लाखुसर में पिछले आठ माह से कौवों को लगातार दाना डाल रही है। पहले दो-तीन कौवे आते थे अब इनकी संख्या २५० से अधिक हो गई है। वे बताती है कि दाना डालने वाली जगह वह अकेली होती है तो कौवें उसके हाथ-सिर व कंधे पर बैठ जाते हैं अन्यथा दूर खड़े रहते हैं।
संतोष बताती है कि हर रोज सुबह कौवें उसका इंतजार करते रहते हैं। जब उसकी गाड़ी परिसर में पहुंचती है तो कौवें की कांव-कांव करने लगते हैं। वह जब तक उन्हें दाना नहीं डालती वह चुप नहीं होते। इतना ही नहीं कौवों उसके इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। दाना डालने के बाद वह उड़ जाते हैं। कौवों को पहचाना मुश्किल होता है सब एक जैसे लगते हैं लेकिन कौवें उसकी गाड़ी तक को पहचानते हैं। कभी-कभार वह गाड़ी से नहीं उतरती है तो कौवों निराश हो जाते हैं।
विकास अधिकारी संतोष बताती है कि वह पांच साल से पक्षियों को दाना डाल रही है। वह बीकानेर में रहती है। वहां भी नियमित रूप से पक्षियों को दाना डालती हूं लेकिन लाखुसर में पिछले आठ महीने से लगातार कौवों को दाना डाल रही हूं। हर माह पक्षियों के चुगे के लिए निर्धारित रकम खर्च करती हूं। अब कौवों से छोटे-बच्चों की तरह लगाव हो गया है।
कुत्तों को देते हैं रोटी
संतोष भील के पति मानराज भील को जानवरों से बेहद प्रेम हैं। वे हर दिन कुत्तों को रोटी डालते हैं। वह अपनी पत्नी को ऑफिस छोडऩे के लिए जैसे ही घर से निकलते हैं तब रास्ते में कुत्तों का झुंड उन्हें घेर लेता है। वह पिछले सात साल से कुत्तों को रोटी खिला रहे हैं। कुत्ते भी अब इन्हें पहचानने लगे हैं। दूर से इनकी बाइक को देखकर दौड़े चले आते हैं।