बिलासपुर

11 वीं कक्षा का एक छात्र जब अपने दोस्तों के साथ कूंद पड़ा था आजादी की लड़ाई में, फिरंगी भी बोलते थे ये हैं महान तलवारबाज

15 august 2019: बिलासपुर के चित्रकांत(freedom fighter) ने अंतिम सांस तक की देश की सेवा, 15 अगस्त को शहरवासी कर रहे याद

बिलासपुरAug 09, 2019 / 12:51 pm

Murari Soni

11 वीं कक्षा का एक छात्र जब अपने दोस्तों के साथ कूंद पड़ा था आजादी की लड़ाई में, फिरंगी भी बोलते थे ये हैं महान तलवारबाज

बिलासपुर. भारत छोड़ो आंदोलन की मुहिम में पूरा देश जुट चुका था(15 august 2019)। हर भारतीय के सीने में भारत माता को आजादी(freedom fighters) दिलाने का सपना पल रहा था। महात्मा गांधी के गिरफ्तार होने के बाद यह आंदोलन पूरे देश (independence day chhattisgarh)में आग की तरह फैल चुका था। क्या बड़े-क्या बच्चे सभी अपने-अपने स्तर पर इस मुहिम को पूर्ण करने में जुटे हुए थे। जिसकी आंच बिलासपुर(freedom fighter in chhattisgarh) के युवाओं तक पहुंच चुकी थी। शहर के मल्टीपरपस स्कूल में 11वीे क्लास के विद्यार्थी चित्रकांत जायसवाल अपने दोस्तों के साथ महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के खिलाफ ज्ञापन सौंपने कलेक्टर आफिस पहुंचे। इतनी विशाल रैली आजादी के लिए बिलासपुर वासियों ने पहली बार देखी थी। कलेक्टर आफिस पहुंचने के पहले ही पुलिस के जवान चित्रकांत सहित उनके दोस्तों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। यह बात सन् 1942 की है। रायपुर जेल में डेढ़ साल गुजराने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी की।
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महात्मा गांधी के बिलासपुर आगमन पर चित्रकांत और उनके दोस्त मुलाकात कर उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर पूरा जीवन आजादी की लड़ाई में झोंकने का निर्णय लिया और पूरी तरह रम गए। 26 सितंबर 1923 को बिलासपुर के सदर बाजार में जन्मे चित्रकांत जायसवाल ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। उनके वरिष्ठ और साथी उनकी नेतृत्व क्षमता के कायम थे और उन्हें प्यार से नेताजी कहकर संबोधित करते थे। कारावास के दौरान उन्हें काफी यातनाएं दी गई। शरीर ढंकने के लिए एक कंबल दिया जाता था, जिसे दिन भर पहना करते थे और रात में उसे अपना बिस्तर बनाकर सोया करते थे। तसला में उन्हें भोजन परोसा जाता था जिसमें कंकड़ भरे चावल खाने को दिया जाता था। चावल से कंकड़ चुनकर अपना पेट भरते थे। इतनी यातानाएं झेलने के बाद भी आजादी के प्रति उनका मन नहीं डोला। जेल से रिहा होकर फिर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उनकी मृत्यु 26 फरवरी 2001 में हुई।
 

बाल न कटवाने का लिया था संकल्प
चित्रकांत जायसवाल की पत्नी सरला जायसवाल ने बताया कि वे देश की आजादी के लिए प्राण न्योछावर करने का संकल्प ले चुके थे। उन्होंने प्रण लिया था कि जब तक देश आजाद नहीं होता तब तक वे अपना बाल नहीं कटवाएंगे। इस दौरान उनके बाल बहुत बड़े हो गए थे(15 august 2019)। उन्हें पढऩे का बहुत शौक था। पढ़ाई के साथ-साथ घर-परिवार चलाने के लिए अपना खुद का व्यवसाय भी संभालते थे। एक बार पीएससी के चेयरमैन भरतचंद काबरा ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मिलने वाली पेंशन के बारे में पूछा। उन्होंने यह कहकर टाल दिया और कहा कि मैं पैसे के लिए आजादी की लड़ाई में शामिल नहीं हुआ था और न ही मुझे पेंशन चाहिए। फिर भी भरतचंद काबरा ने उन्हें सरकार की तरफ से मिलने वाले पेंशन की राशि नियमित कराई।
परिवार ने अपना व्यवसाय बदला दिया
चित्रकांत जायसवाल के भतीजे सतीश जायसवाल ने बताया कि हमारा पुश्तौनी व्यवसाय शराब का था। एक बार चाचा ने पिताजी से कहा कि इस घर में शराब का धंधा होगा या फिर आजादी का आंदोलन। उस समय पिताजी ने उनकी बात को टाल दिया। चाचा को लगा कि बड़े भाई मेरी बातों को नहीं मानेंगे। सुबह होते ही उन्होंने नहा-धोकर पिताजी का चरण स्पर्श किया। इस पर पिताजी ने चौकते हुए पूछा कि क्या बात हैं आज यह सब क्यों। इस पर चाचा ने जवाब देते हुए कहा कि मैं आपके खिलाफ अनशन करने वाला हंू। छोटे भाई की इस बर्ताव का मतलब पिताजी समझ गए थे। उनहोंने कहा कि मैंने सारे शराब के ठेके रात में ही बंद करवा दिया हैं। अब इस घर से ही आजादी का आंदोलन का आगाज होगा। उसके बाद पिताजी ने शराब दुकान की जगह जायसवाल पुस्तक भंडार का व्यवसाय प्रारंभ कर दिया।
थ्री मस्केटीयर के नाम से थे प्रसिद्ध
चित्रकांत जायसवाल, रोहणी बाजपेई व दयाशंकर दुबे स्कूल के दौरान ही अच्छे दोस्त बन गए थे। आजादी के आंदोलन(freedom fighter) में वरिष्ठों में डॉ. देवरस व पं. शिव दुलारे मिश्र भी शामिल थे। तीनों की तिकड़ी के चर्चा शहर से आसपास के क्षेत्रों में काफी प्रसिद्ध था। जिससे इन लोगों का नाम थ्री मस्केटीयर पड़ गया। जिसका हिन्दी में (15 august 2019)महान तलवारबाज कहा जाता है।

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