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बिलासपुर

बच्चा कोई वस्तु नहीं, सर्वांगीण विकास के लिए उसको परिवार का प्यार मिलना जरूरी

हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि बच्चा कोई वस्तु नहीं है। उसकी अभिरक्षा के मुद्दे को प्यार और मानवीय स्पर्श से निराकृत किया जाना चाहिए। बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए सभी परिजन का साथ जरूरी है। कोर्ट ने मामले के तथ्यों और बच्चे की इच्छा के अनुसार उसको मां को सौंपा।

बिलासपुरMay 27, 2022 / 06:32 pm

AVINASH KUMAR JHA

बच्चा कोई वस्तु नहीं, सर्वांगीण विकास के लिए उसको परिवार का प्यार मिलना जरूरी

बच्चा कोई वस्तु नहीं, सर्वांगीण विकास के लिए उसको परिवार का प्यार मिलना जरूरी

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि बच्चा कोई वस्तु नहीं है। उसकी अभिरक्षा के मुद्दे को प्यार और मानवीय स्पर्श से निराकृत किया जाना चाहिए। बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए सभी परिजन का साथ जरूरी है। कोर्ट ने मामले के तथ्यों और बच्चे की इच्छा के अनुसार उसको मां को सौंपा। हालांकि, बच्चे के पिता और दादा दादी को भी मिलने और संपर्क करने का अधिकार दिया। इस फैसले से भिलाई के कारोबारी को उनकी बेटी से मिलने का अवसर और बेटी को भी पिता का प्यार मिल पाएगा।
दुर्ग-भिलाई के प्रतिष्ठित कारोबारी निमिश एस अग्रवाल और रूही अग्रवाल की शादी 2007 में हुई थी। जनवरी 2012 में उनकी एक बेटी पैदा हुई। इसके कुछ समय बाद ही पति-पत्नी के संबंधों में दरार आ गई। विवाद होने पर पत्नी ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ केस दर्ज करा दिया। जिसके चलते निमिश व परिवारवालों को जेल में रहना पड़ा। इस दौरान पत्नी अपने पति से अलग हो गई और बच्ची को भी अपने साथ ले गई। तब, पिता निमिश एस अग्रवाल ने अपनी बेटी की समुचित देखभाल करने के लिए फैमिली कोर्ट में परिवाद दायर किया।
फैमिली कोर्ट ने कस्टडी नहीं दी, हाईकोर्ट में चुनौती

फैमिली कोर्ट से कस्टडी देने से इनकार करते हुए परिवाद खारिज कर दिया। इस पर निमिश ने हाईकोर्ट में अपील की। इसमें बच्चों की देखभाल व अभिरक्षा के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए अलग-अलग फैसलों का हवाला दिया गया। साथ ही बताया कि बच्चे के सही विकास और देखभाल करने के लिए उसे पिता की अभिरक्षा दी जाए। याचिकाकर्ता कारोबारी की ओर से बताया गया कि फैमिली कोर्ट ने बच्ची को पिता से मिलने का अधिकार दिया है। लेकिन पिता अपनी बच्ची से मिलने जाते हैं तो अलग-अलग आरोप लगा केस दर्ज करा दिया जाता है। कारोबारी की ओर से कोर्ट में कहा गया कि इसके चलते उनको जेल जाना पड़ा। बच्ची और उसके पिता को एक-दूसरे के प्यार से वंचित होना पड़ रहा है। अपील पर याचिकाकर्ता के साथ ही उनकी पत्नी की तरफ से बहस की गई। उनकी पत्नी ने बच्ची की कस्टडी पिता को देने का विरोध किया। हाईकोर्ट ने कहा- पिता को बच्ची से मिलने के लिए नहीं रोका जा सकता सभी पक्षों को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने बच्चे से मिलने के संबंध में महत्वपूर्ण आदेश दिया है।
बच्चे का कल्याण सर्वोपरि

कोर्ट ने कहा है कि बच्चे की कस्टडी संबंधी मामलों में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है। बच्चों की कस्टडी के संबंध में उनके सर्वांगीण विकास के लिए माता-पिता के साथ-साथ दादा-दादी को भी मुलाकात करने का अधिकार देना आवश्यक होगा। इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने पिता को अपनी बेटी से मिलने का अधिकार दिया है। इसके लिए कोर्ट ने मां के लिए शर्तें भी तय की है। सप्ताह में एक दिन, पर्व और छुट्‌टी पर बच्ची को साथ रख सकेगा पिता कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक शनिवार और रविवार को एक घंटे के लिए वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से पिता के साथ ही दादा-दादी अपनी बच्ची से मिल कर बात कर सकेंगे। इसके लिए मां के साथ ही पिता को भी स्मार्ट फोन रखना होगा। चूंकि, बच्ची के माता और पिता दोनों एक ही जिले में रहते हैं। लिहाजा कोर्ट ने आदेश दिया है कि एक पखवाड़े में प्रत्येक शनिवार को पिता अपनी बच्ची को दिन भर रख सकता है। इसके लिए बच्ची की मां को दुर्ग के फैमिली कोर्ट में सुबह 10.30 से 11 बजे के बीच पेश करना होगा।

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