तीर छूटा तो, पर नहीं भेद पाया रावण का अमृत कुंड मंत्री का तीर जैसे ही धनुष का साथ छोड़कर रावण की नाभि में बने अमृत कुंड की तरफ बढ़ा तो उसकी रफ्तार कम हो गई। देखते ही देखते वह तीर बीच में जाकर सुलगने लगा और एक मिनट के भीतर ही फटकर नीचे गिर गया।
मंत्री थे हड़बड़ी में मंत्री को रेलवे के बाद शहर के विभिन्न इलाकों में जाना था। उन्हें 6 से अधिक कार्यक्रम में शामिल होना था, इसलिए वे जल्दी से इस रावण को मारकर आगे बढऩा चाहते थे। इसीलिए यहां पर फिर से तीर नहीं बनाया गया।
रावण को जलाया मसाल से आयोजकों ने बाद में तीर की बजाए रावण को मसाल से जलाने का फैसला लिया। उन्होंने तय किया कि इसे अब मसाल से ही जलाया जाएगा। और अंत में रावण को पैरों की तरफ से मसाल के जरिए जला दिया गया।
राजनीति असर भी यहां पर होने वाले कार्यक्रम को हर साल रेलवे एरिया से पार्षद रामाराव आयोजित करते आए हैं, लेकिन इस बार यह आयोजन स्वतंत्र रूप से किया गया। सबसे ऊंचा और पुराना रावण दहन कार्यक्रम
रेलवे का यह कार्यक्रम बीते 67 सालों से चल रहा है। डीआरएम ने बताया कि मैंने नॉर्थ इंडिया में आकर देखा कि रावण दहन कार्यक्रम इतना व्यापक स्तर पर होता है।