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देश में बिकते हैं 9 लाख ट्रैक्टर, बिकने के बाद कोई खोज-खबर नहीं

locationबिलासपुरPublished: Dec 07, 2021 08:21:37 pm

Automobiles News: आफ्टर सेल सर्विस, फाइनेंस (Finance)आदि में गफलतें, मगर केस उपभोक्ता फोरम में नहीं, किसानों में जागरूकता की भारी कमी, वित्त वर्ष (Finance year) 2019-20 में देश में 7 लाख 9 हजार 2 ट्रैक्टर्स बिके, वित्त वर्ष 2020-2021 में देश में 8 लाख 99 हजार 429 ट्रैक्टर्स बिके, एक वर्ष में 1 लाख 90 हजार 427 ट्रैक्टर अधिक बिके, ट्रैक्टर इंडस्ट्री में ग्रोथ रेट 26.6 फीसद

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बरुण सखाजी.
बिलासपुर. Automibles News: देशभर में ट्रैक्टर बाजार ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का बड़ा हिस्सा है, लेकिन इसमें उपभोक्ता सर्विस के मामलों में सबसे ज्यादा ढिलाई बरती जाती है। छत्तीसगढ़ में ही ट्रैक्टर की एक दर्जन से अधिक कंपनियां अपने ट्रैक्टर्स बेचती हैं, लेकिन मुकम्मल तौर पर ट्रैक्टर्स की सर्विसिंग या ऑफ्टर सेल सर्विसेज के मामले में पीछे हैं। ऑटोमोबाइल मैनुफैक्चरर के मुताबिक ट्रैक्टर (Tracror) के तमाम शोरूम (Tractors Show rooms) में सर्विस सेंटर्स हैं, लेकिन यह अन्य वाहन की तरह सर्विसिगं के लिए नहीं आते। सर्विसिंग ही न हीं बल्कि ट्रैक्टर खराब की वारंटी पीरियड में खराब निकलने पर भी बहुत कम किसान क्लेम होते हैं। उपभोक्ता फोरम (Consumer forum) में तो इनके मामले शून्य बराबर ही हैं।

उपभोक्ता फोरम में मामले न के बराबर
उपभोक्ता फोरम में वाहनों से जुड़े अनेक मामले आते हैं। लेकिन ट्रैक्टर को लेकर लगभग न के बराबर मामले हैं। उपभोक्ता फोरम के वरिष्ठ वकील राजेश भावनानी के मुताबिक ट्रैक्टर के मामले आते तो हैं, मगर बहुत कम। इसकी वजह एक तो किसान इसका इस्तेमाल सर्विस कंडीशन के हिसाब से नहीं करता, दूसरा किसानों में जागरूकता नहीं होती, तीसरा मशीन का असगंठित क्षेत्र मे ज्यादा इस्तेमाल है, जहां यह प्रमाणित करना मुश्किल है कि ट्रैक्टर में गारंटी या वारंटी वाली चीज ही खराब हुई थी। ट्रैक्टर के पाट्र्स की शिकायतें भी कई बार एजेंसी स्तर पर ही निपटा दी जाती हैं।

फाइनेंस में अनेक बैंक्स
ट्रैक्टर फाइनेंस को मुख्यधारा के बैंक एटीएल यानी एग्रीकल्चर टेक्निकल लोन की श्रेणी में रखते हैँ। इनकी प्रक्रिया लंबी और उलझाऊ होती है। जबकि एनबीएफसी या स्मॉल फाइनेंस कंपनियों की प्रक्रिया किसान फ्रैंडली होती है। इस कारण फाइनेंस करने वाली छोटी कंपनियां ट्रैक्टर के क्षेत्र में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। जबकि इनकी ब्याज दरें 12 फीसद तक होती हैं, वहीं राष्ट्रीयकृत बैंकों की ब्याज दरें कहीं कम।

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ट्रैक्टर एजेंसियों पर नहीं आते सर्विस होने ट्रैक्टर
ट्रैक्टर एजेंसी संचालक सरदार हरप्रीत सिंह कहते हैं इनकी सर्विंस की अवधि समय या दूरी से नहीं होती, बल्कि घंटों के हिसाब से होती है। बड़े किसान तो घंटों और अवधि में तालमेत बिठा लेते हैं, लेकिन छोटे किसान नहीं बिठा पाते। इसलिए ज्यादातर लोग इंजन ऑइल और गीयर ऑइल बदलकर ही काम चलाते रहते हैं।
यह एक हैवी मशीन की श्रेणी में आता है, इसलिए इसमें बहुत अधिक सर्विसिंग होती भी नहीं। ऑइल फिल्टर्स, डीजल फिल्टर्स आदि पूरे के पूरे बदले जाते हैं। इसलिए किसानों को किसी सर्विस सेंटर की जरूरत नहीं पड़ती। मशीन के हिसाब से हमारे पास सभी स्टैंडर्ड होते हैं।
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