उपभोक्ता फोरम में मामले न के बराबर
उपभोक्ता फोरम में वाहनों से जुड़े अनेक मामले आते हैं। लेकिन ट्रैक्टर को लेकर लगभग न के बराबर मामले हैं। उपभोक्ता फोरम के वरिष्ठ वकील राजेश भावनानी के मुताबिक ट्रैक्टर के मामले आते तो हैं, मगर बहुत कम। इसकी वजह एक तो किसान इसका इस्तेमाल सर्विस कंडीशन के हिसाब से नहीं करता, दूसरा किसानों में जागरूकता नहीं होती, तीसरा मशीन का असगंठित क्षेत्र मे ज्यादा इस्तेमाल है, जहां यह प्रमाणित करना मुश्किल है कि ट्रैक्टर में गारंटी या वारंटी वाली चीज ही खराब हुई थी। ट्रैक्टर के पाट्र्स की शिकायतें भी कई बार एजेंसी स्तर पर ही निपटा दी जाती हैं।
फाइनेंस में अनेक बैंक्स
ट्रैक्टर फाइनेंस को मुख्यधारा के बैंक एटीएल यानी एग्रीकल्चर टेक्निकल लोन की श्रेणी में रखते हैँ। इनकी प्रक्रिया लंबी और उलझाऊ होती है। जबकि एनबीएफसी या स्मॉल फाइनेंस कंपनियों की प्रक्रिया किसान फ्रैंडली होती है। इस कारण फाइनेंस करने वाली छोटी कंपनियां ट्रैक्टर के क्षेत्र में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। जबकि इनकी ब्याज दरें 12 फीसद तक होती हैं, वहीं राष्ट्रीयकृत बैंकों की ब्याज दरें कहीं कम।
ट्रैक्टर एजेंसियों पर नहीं आते सर्विस होने ट्रैक्टर
ट्रैक्टर एजेंसी संचालक सरदार हरप्रीत सिंह कहते हैं इनकी सर्विंस की अवधि समय या दूरी से नहीं होती, बल्कि घंटों के हिसाब से होती है। बड़े किसान तो घंटों और अवधि में तालमेत बिठा लेते हैं, लेकिन छोटे किसान नहीं बिठा पाते। इसलिए ज्यादातर लोग इंजन ऑइल और गीयर ऑइल बदलकर ही काम चलाते रहते हैं।