तुरंत-फुरंत टिप्पणीः यह लोकतंत्र पर हमला नहीं तो क्या हैः बरुण सखाजी
बिलासपुर में कांग्रेसियों पर पुलिस की बरबरतापूर्ण कार्रवाई पर बरुण सखाजी के तुरंत-फुरंत कॉलम में टिप्पणी
तुरंत-फुरंत टिप्पणीः यह लोकतंत्र पर हमला नहीं तो क्या हैः बरुण सखाजी
तुरंत-फुरंतः बरुण सखाजी प्रदर्शन, विरोध अथवा सहमति इन्हीं के इर्दगिर्द बुना होता है लोकतंत्र। लोकतंत्र की खूबसूरती ही इसमें है। लेकिन बिलासपुर में जिस बरबरता के साथ कांग्रेसियों पर लाठियां बरसाई गईं, वह बेहद चिंताजनक है। सिर्फ लाठियां ही नहीं बरसाई, बल्कि दुर्व्यवहार भी भरपूर किया गया। किसी भी पार्टी कार्यालय में पुलिस की इस तरह की कार्रवाई किसी आपराधिक गतिविधि के समान जान पड़ती है। प्रदर्शनकारियों के हाथ में न तो कोई हथियार था न कोई उग्र हो जाने की ऐसी कोई स्थिति। प्रदर्शन जहां होना था वहां तो पुलिस ने कोई सख्ती दिखाई नहीं। लेकिन बाद में जाने क्या सवार हुआ सर पर कि पार्टी दफ्तर में घुसकर लोगों की धर-पकड़ शुरू कर दी। वह भी तब जबकि शांतिपूर्ण स्थिति में राजनीतिक कार्यकर्ता बात करने तैयार थे। ऐसा कैसा अफसराना तरीका और ऐसा कैसा अनुपालन। यह तात्कालिक पुलिसिया रोश आखिर किसे नुकसान पहुंचा रहा है। दल के रूप में होता होगा किसी को नुकसान या किसी को फायदा, लेकिन एक कामयाब डेमोक्रेसी में ऐसी बरबरताएं कोई सम्मान की बात नहीं। बेशक कोई सालों से सत्ता में हो, पर इसका अर्थ कोई सत्ता की अमरता नहीं। एक तरफ पुलिस आपराधिक मामलों में इतनी सक्रियता दिखाने में झिझकती है तो वहीं ऐसे चुनावी परिवेश में इतने क्रूर तरीके से किसी दल विशेष के प्रदर्शन को ऐसे कुचल रही है। वही प्रदर्शन भी प्रतीकात्मक था। यह अत्यंत भयकारक है। यह इसलिए और ज्यादा अप्रिय स्थित है, क्योंकि महज 30 किलोमीटर दूर आज ही प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बिलासपुर जिले में होते हैं। सूचनाएं रक्तवाहिनयों में रक्त की तरह दौड़ती हैं, लेकिन हुकुम का कोई एकाधिक अल्फाज भी नहीं आया। यह ध्यान रखना जरूरी होगा कि पुलिस को बल कहा जाता है। बल का काम दमन करना होता है, सृजन नहीं। इसीलिए इस पर काबू के लिए ऊपरी तौर पर चुनावी लोकतंत्र से निकलकर आई शक्तियां बिठाई जाती हैं, वरना फौजी फितूर जम्हूरियत को रोज उजाड़े रोज बसाने का अभिनय करे। इस तरह की कार्रवाई छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र का अधोपतन है। क्या हम सिर्फ दमन से ही सत्ता का दामन भरना चाहते हैं। क्या पुलिस को ऐसी रैलियों और प्रदर्शनों के दौरान संयम बरतने की कोई हिदायत नहीं दी जानी होनी चाहिए?
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