ये होगा फायदा
नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के पार्षद कम जीतते हैं तो तोडफ़ोड़ कर अपना महापौर व अध्यक्ष चुना जा सकता है। इससे पहले भी ऐसा हुआ है। 2000 के पहले पार्षद, महापौर और अध्यक्ष चुना करते थे। लेकिन 2000 के बाद जब से ये निर्वाचन प्रत्यक्ष हुआ यानि जनता ने चुनना शुरू किया तो सिर्फ एक बार वाणीराव कांग्रेस से महापौर के लिए जीती इसके बाद इस सीअ पर भाजपा का कब्जा रहा है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी व राष्ट्रीय सचिव डॉ. चंदन यादव जिले के सभी विधानसभा के कार्यकर्ताओं की बैठक लेकर वहां की नब्ज को टटोला। इस दौरान अनेक कार्यकर्ताओ ने नगरीय निकाय और नगर पंचायतों में कांग्रेस की स्थिति को अच्छा नहीं बताया है।
बिलासपुर नगर निगम में राजेश पाण्डेय को पार्षदों ने चुनकर महापौर बनाया। उमाशंकर जायसवाल भाजपा में थे, तब महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से करवाया गया। इसमें उमाशंकर ने कांग्रेस के बैजनाथ चंद्राकर को हराया। इसके बाद भाजपा से अशोक पिंगले ने शेख गफ्फार को हराया। शेख गफ्फार के बाद कांग्रेस से वाणीराव ने भाजपा के मंदाकिनी पिंगले को हराया इसके बाद भाजपा के किशोर राय ने रामशरण यादव को हराया।
नगर निगम में कांग्रेस के 24 पार्षद चुनाव जीतकर आए। तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी विधायक व मंत्री भी भाजपा के थे। चार निर्दलीय और 38 भाजपा के पार्षद थे। इस तरह दोनों पार्टी में 14 पार्षदों का अंतर है। अब कांग्रेस की सरकार है। संगठन की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा चुनकर आए। वैसे भी पार्षद चुनाव (Municipal elections) को पार्टी के बजाय व्यक्तिगत चुनाव ज्यादा माना जाता है। इसमें चुनाव वही जीतता है जिसकी अपने वार्ड में छवि अच्छी होती है।