बिलासपुर . जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस आरपी शर्मा की युगलपीठ में तेंदूपत्ता संग्रहण के टेंडर में गडबडी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सभी पक्षों की गवाही पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब कभी भी बडा फैसला आ सकता है। गत एक माह तक चली सुनवाई में शासन, याचिकाकर्ता और ठेकेदारों की ओर से अपने पक्ष में दलीलें दी गईं। शासन ने पूरे मामले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए सिरे से नकार दिया कि टेंडर में किसी प्रकार की गडबडी हुई है और 400 करोड के नुकसान की संभावना है। वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि पिछले वर्ष तेंदूपत्ता से 1368 करोड की आय हुई थी, जो इस वर्ष घटकर 950 करोड हो गई है। नुकसान तो सीधा-सीधा दिख रहा है। अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के संत कुमार नेताम एवं एवं माटी मंच
कोरबा के
अमरनाथ अग्रवाल ने तेंदूपत्ता टेंडर में दरों की अफरातफरी और आदिवासियों को दी जाने वाली बोनस में 300 करोड रुपए की गडबडी को लेकर याचिका दायर कर मामले की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की थी। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में आदिवासी समाज के करीब 10 लाख लोग तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य करते हैं। इसके एवज में शासन ना सिर्फ उन्हें मेहनताना देता है, बल्कि तेंदूपत्ता की बिक्री के बाद होने वाली आय का 80 प्रतिशत राशि बोनस के रूप में दिए जाने का प्रावधान है।
शासन द्वारा इस वर्ष जिस दर पर तेंदूपत्ता की खरीदी की गई। उसके अनुसार इस वर्ष मेहनताना और बोनस की राशि में 51 प्रतिशत का नुकसान होगा। साथ ही आदिवासी किसानों के मेहनताना, बोनस और शासन से मिलने वाली सुविधाओं में भारी कमी आएगी। मालमे की प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने हाईएस्ट बिडरों को टेंडर अलाट किए जाने के निर्देश दिए। शासन ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा ये संभव नहीं है। चार राउंड के टेंडर हो गए हैं। साथ ही देश के अन्य 10 प्रदेशों में रेट ओपन हो गए हैं। इस मामले में अब परिवर्तन संभव नहीं है। शासन ने पूरे मामले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए मामले की सुनवाई जल्द कर निराकरण किए जाने की मांग की। मंगलवार को सभी पक्षों की गवाही पूरी होने के बाद युगलपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
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