कौवे ऐसे पक्षी हैं जिनके साथ हमारी धार्मिक मान्यतांए जुड़ी हैं, कागभुसुंडी को हर कोई जानता व समझता है। पितृपक्ष में इनकी महत्ता काफी बढ़ जाती है। घर के मुंडेर पर यदि काग उचरता (विशेष ध्वनि ) है तो मानते हैं कि कोई संदेश या मेहमान आने वाला है। कौवे का रहवास मनुष्यों के साथ काफी घुला मिला है किसी भी परिवेश में वो रह लेते हैं, इसके बाद भी इनका शहर से उड़ जाना चिंताजनक है।
कुछ ने दिया है ध्यान
गौरैया के गायब होने के बाद कुछ लोगों ने कौवों पर भी ध्यान दिया। यदि हम ग्लोबली बात करें तो यूएस के यूनिवर्सिटी ऑफ आईयोवा के प्रोफेसर पॉल आर ग्रीनॉफ ने एक स्टडी की है। जिसमे कॉमन इंडियन हाउस क्रो के गायब होने के कारण तलाशे गए हैं। उनके अनुसार ये स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं है बल्कि अफ्रीका, साउथ एशिया और साउथईस्ट एशिया में भी ये देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि कौवे काफी बुद्धिमान और खुद को किसी भी वातावरण में ढालने को सक्षम होते हैं, इसके बाद भी शहरीकरण के कारण उनकी संख्या खत्म हो रही है।
एक्सपर्ट व्यू
कौवे का इकोनॉमिक इंपोर्टेंस इस समाज में काफी है। धार्मिक मान्यता के अलावा मनुष्यों के साथ को-हेबिटेंस हैं। वर्तमान में कौवों की फीडिंग हेबिट यानि भोजन की व्यवस्था शहरों में प्रभावित हुई है। इसके अलावा इनका नेस्टिंग सरवाईवल रेट भी काफी कम हो गया है। इनके घोंसलों के लिए शहर में जगह नहीं है। इसके कारण कौवों की संख्या घटती जा रही है। हलांकि टेक्नोलॉजी का इनपर क्या असर हुआ है इसका कोइ रिसर्च अभी तक तो नहीं हुआ है लेकिन ये किसी भी परिस्थिति में सर्वाइव करने वाले जीव हैं इसके बाद भी इनका गायब होना या इस शहर से उड़ जाना चिंताजनक है।