state politics in chhattisgarh: ए ओहददारों। सियासत, चुनाव, ताकतों का जौहर, तमाम गुजरे वक्त की बातें हुईं। अब लड़ाई बंद करो। कभी आम हयात की जरूरतों के लिए भी लड़ो।
बरुण सखाजी …ए ओहददारों। सियासत, चुनाव, ताकतों का जौहर, तमाम गुजरे वक्त की बातें हुईं। अब लड़ाई बंद करो। कभी आम हयात की जरूरतों के लिए भी लड़ो। कभी खुदे शहर के जख्म भरने के लिए भी लड़ो। कभी राष्ट्रीय राजमार्गों की हालतों के लिए भी लड़ो। कभी नालियों, सड़कों की सफाई के लिए भी लड़ो। कभी सृजनशील होकर लोकोन्मुखी भी बनो।
कभी एक लड़ाई सहूलियतों से महरूम स्कूली बच्चियों की भी लड़ो। कभी बिखरे, टूटे, गड्ढेदार रतनपुर रोड की नुकीली गिट्टियों को देवी की परीक्षा मान लेने वाले भक्तों की भी सुनो। कभी बिल्हा की साइडिंग की कालिख के लिए भी लड़ो। कभी कोटा-करगी के रोडों के लिए भी लड़ो। कभी रेत खदानों में हो रहे अवैध खनन के लिए भी लड़ो। कभी कोल वॉशरियों में अनियंत्रित उल्लंघनों के लिए भी लड़ो।
कभी 4 साल से निर्माणाधीन रायपुर-बिलासपुर रोड को जल्द पूरा करने के लिए भी चलो। कभी पाली तक गड्ढों में समाते वाहनों के लिए भी लड़ो। कभी अंबिकापुर तक करीब 3 वर्षों से दुर्गम रास्ते की भी बात करो। कभी लालखदान के ब्रिज को पूरा करने के लिए भी उठो। कभी एकीकृत नगर निगम के शीर्ष मुद्दों पर भी लड़ो।
विधानसभा से लेकर सड़क तक आवाज हो ऐसे लड़ो। क्या, और कब तक रावण दहन, सहपाठी को निपटाने, ऊंचा या नीचा दिखाने की ओछी लड़ाइयां लड़ते रहोगे। उम्मीदों की महाकिरण को धता बताते रहोगे। अतिथियों की लड़ाई। कार्यक्रमों में आगे की सीटों की लड़ाई। फूल मालाओं की लड़ाई। ताज औ हुक्म की लड़ाई। अंदरूनी आफतों की लड़ाई। आखिर कब तक?
क्या लोगों ने आपको इसलिए चुना है? क्या नहीं दिखती रेंगती अरपा। नहीं दिखते खड्डेदार रास्ते। नहीं दिखता हाल ही का भीषण जलसंकट। नहीं दिखता हल्की बारिश में ही लबालब नगर। नहीं दिखता सालों से अपनी तारीख पर रोता मेंटल अस्पताल। नहीं दिखता सिम्स का छोटा चौके सा चौकोना। नहीं दिखता गोलबाजार की संकरी सड़कों से बमुश्किल सांस लेता ट्रैफिक। नहीं दिखता तिफरा का धब्बा ब्रिज। नहीं दिखती नवनिर्माणाधीन कार्यक्रमों की कछुआ चाल।
आपको बस दिखती है तो अखबारों में अपनी छोटी-बड़ी तस्वीरें। वर्चस्व के लिए दल के भीतर ही दलदल बना देने की जिद। आपस में जूझते, लड़ते, झगड़ते महज वर्चस्व के लिए। सियासत क्या सिर्फ वोट, मंच, माला, मूर्ति, जय-जिंदाबाद, कार्ड में ऊपर-नीचे नाम, दहन, विसर्जन ही है। क्या क्या यह विजन नहीं, मिशन नहीं। कट, कॉपी और पेस्ट की सियासत न कीजिए। जिले के अधिकतर विधायक, सांसद अंडर-60 नेतृत्वकर्ता हैं, कुछ नया कीजिए। ये दांव-पेंच, उठा-पटक, घोड़ा-पछाड़ आखिर कब तलक? इससे नुकसान आपको जो है सो है, लेकिन लोगों के नुकसान का क्या?