जब आदिवासी बैगाओं के इस गांधी को समझा गया था माओवादी, बिठा दी गई थी जांच
लेकिन इनके सेवा भाव को देखकर अफसर भी समझ गए कि ये कोई पागल प्रोफेसर है जो जंगल में अपनी जिंदगी खत्म करने आया है
जब आदिवासी बैगाओं के इस गांधी को समझा गया था माओवादी, बिठा दी गई थी जांच
बिलासपुर। प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा जब अपना सबकुछ छोड़कर अचानकमार के जंगलों में बैगा आदिवासियों के बीच पहुंचे और उनकी सेवा करनी शुरू कर दी तो, प्रशासन के कान खड़े हो गए थे। काफी पहले बातचीत के दौरान प्रोफेसर खेरा ने हंसते हुए कहा था कि उनके खिलाफ सरकार के नुमांइदों ने जांच तक बिठा दी थी। जब जांच हुई और इनके सेवा कार्यों को देखा गया तो अधिकारियों ने पाया कि ये सेवाधर्मी व्यक्ति हैं। हंसते हुए प्रोफेसर खेरा ने कहा कि सरकारी अधिकारियों को यह लगा कि ये कोई पागल प्राफेसर है जो अपना जीवन जंगल में आदिवासियों के बीच खत्म करने आया है।
बाद में छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से महात्मा गांधी कार्यांजलि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसमें जो पांच लाख रुपए उन्हें मिले इस पैसे को भी उन्होंने बैगा आदिवासी बच्चों के शिक्षा के लिए दान कर दिया।
जीवन परिचय
प्रोफेसर खेरा का जन्म १३ अप्रैल १९२८ में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा झंग, पंजाब पाकिस्तान में हुई। इसके बाद वो १९४८-४९ में दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने बीए किया। इसके बाद एमए गणित व मनोविज्ञान से किया। १९७१ में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही पीएचडी की। इसके बाद हिंदु कॉलेज दिल्ली में रीडर के पद पर नौकरी की।
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