टाइप-1:
पेनक्रियाज शरीर में इंसुलिन बनाना बंद कर देता है। ऐसे में मरीज को शरीर के बाहर से इंसुलिन देने की जरूरत पड़ती है। इसे आईडीडीएम (इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलिटस) भी कहते हैं।
एनआईडीडी (नॉन इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलीटस) में शरीर की कोशिकाएं बन रहे इंसुलिन पर प्रतिक्रिया नहीं करती जिससे इंसुलिन बेअसर हो जाता है। जेस्टेशनल डायबिटीज:
यह ज्यादातर ऐसी महिलाओं को होती है जो गर्भवती हों और उन्हें पहले कभी डायबिटीज की शिकायत न रही हो। प्रेग्नेंसी के दौरान रक्त में ग्लूकोज की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाने के कारण यह परेशानी होती है।
भोजन में 40 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 40 प्रतिशत वसा और 20 फीसदी प्रोटीन युक्तचीजें शामिल करनी चाहिए।अधिक वजन है तो कुल कैलोरी का 60 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 20 प्रतिशत फैट व 20 प्रतिशत प्रोटीन से लेना चाहिए।दही व छाछ के प्रयोग से ग्लूकोज का स्तर कम होता है साथ ही डायबिटीज नियंत्रण में रहती है।