मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से खाने के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं। सुराही का पानी शीतल होने के कारण प्यास बुझाता है और नुकसान नहीं पहुंचाता। साथ ही पाचन क्षमता सुधारता है। इनमें बना खाना खाने से शरीर में हानिकारक तत्त्व नहीं जाते हैं।
सोना खरा और शुद्ध होता है। सोने के बर्तन में खाना खाने से इस धातु में मौजूद सूक्ष्म तत्त्व शरीर व दिमाग को मजबूती देते हैं और रोगों से बचाव करते हैं। ये भी कहा जाता है कि सोने के बर्तन में खाने से दिमाग की कार्यप्रणाली बेहतर होती है जिससे व्यक्ति ऊर्जावान बना रहता है।
चांदी भी शुद्ध है। इसके बर्तनों में खाना खाने से इसमें मौजूद तत्त्व आसानी से शरीर में पहुंचकर हड्डियों व मांसपेशियों को मजबूती देने के अलावा इम्युनिटी बढ़ाते हैं। वहीं प्रतिरोधक क्षमता घटाने वाले तत्त्वों को चांदी में मौजूद सूक्ष्म तत्त्व रोकने या खत्म करने का काम करते हैं। साथ ही यह रक्तसंचार बेहतर करने में प्रभावी है।
लोहे के बर्तनों में बना भोजन खाने से शरीर में खून, आयरन की कमी नहीं होती। बर्तनों में पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है जो खाने के साथ संतुलित रूप में शरीर में पहुंचता है। जिनमें आयरन की कमी है खासकर महिलाएं लोहे के बर्तनों में बना खाना जरूर लें। लोहे की कढ़ाई में बनी सब्जी को खाने से फायदा होगा।
पीतल, कॉपर व कांसा का मिश्रण है। इसमें तेज आग पर खाना बनने से मेटल के तत्त्व खाने में आ जाते हैं जिससे खाना लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। पीतल के लोटे में पानी पीने से इम्युनिटी बढ़ने के साथ मन-मस्तिष्क शांत व पाचन दुरुस्त रहता है। पवित्र होने के कारण पीतल के बर्तन पूजा-पाठ में भी उपयोगी हैं।
तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से यूरिन और पसीने के माध्यम से शरीर का शोधन होता है। इस धातु में मौजूद तत्त्व पानी को शीतल बनाने के साथ साफ भी करते हैं। रातभर तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह पीने से शरीर में ऊर्जा आती है। रोज ऐसा करने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित और पेट संबंधी विकार दूर होते हैं।
पत्ता सबसे शुद्ध है जिसमें किसी भी तरह का दूषित तत्त्व नहीं होता। हल्दी, केले और दूसरे पौधों व पेड़ों के पत्तों में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। इन पत्तों में लपेटकर खाना पकाया जाए तो वह स्वादिष्ट होता है। साथ ही इस खाने में जो पानी प्रयोग होता है वह भोजन को शुद्ध करता है। हरे केले के पत्ते में गरम खाना खाने से उसमें मौजूद हैल्दी बैक्टीरिया भोजन संग पेट में जाते हैं। ये आंतों को मजबूत बनाने के साथ कार्यक्षमता बढ़ाते हैं। इन पत्तों में मौजूद तत्त्व बालों की चमक भी बढ़ाते हैं।
सोने, चांदी, तांबे, पीतल और लोहे के बर्तन में बना या परोसा खाना नहीं खाते हैं तो साल में एक बार आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ‘शोधन थैरेपी’ ले सकते हैं। ये थैरेपी ऋतु के हिसाब से दी जाती है। इसकी मदद से शरीर से विषैले तत्त्वों को बाहर निकालकर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। थैरेपी के हिस्से हैं…
वस्ती : गुदा मार्ग से औषधि डालकर शरीर के दूषित तत्त्वों को बाहर निकाला जाता है। यह थैरेपी मुख्य रूप से वर्षा ऋतु के बाद या इस मौसम के दौरान अपनाई जाती है।