58 वर्षीय महिला च्लोयी जेनिंग्स कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में शोध वैज्ञानिक हैं। हट्टी-कट्टी व स्वस्थ आैर हर तरह से सक्षम, गाड़ी चलाती है, बर्फ पर तेज स्कीईंग करती हैं। उसकी अजीब इच्छा है कि उसके दोनों पांव लकवा ग्रस्त हो जाएं। इच्छा नहीं बल्कि अंतर्मन पर हावी एक विकृत विचार है। खुद को विकलांग मानकर, दिखाकर उसे आत्मसुख मिलता है। वह अक्सर घर व बाहर दोनों पांवों में कैलीपर पहनती है, व्हील चेयर या बैसाखी से चलती है। कैलीपर पहने व्हील चेयर से घर पहुंचते ही उसमें से निकलकर सीढिय़ां चढ़ेगी, दरवाजा खोल व्हील चेयर अंदर लेकर, फिर उसमें बैठ घर में रसोई, बाथरूम जाएगी। लोगों की नजरों में अजीब भाव देख उसे बुरा नहीं लगता है।
वह कहती है, ‘मैं ऐसी ही हूं, ऐसे ही रहूंगी। ऐसे ही रहना चाहती हूं। पांवों से विकलांग अनुभव करना व दिखना मेरी मानसिक मजबूरी है। मैं जानती हूं यह गलत है, लेकिन इस पर मेरा जोर नहीं है।’
इसी तरह न्यूयॉर्क में सेटेलाइट इंजीनियर के पद से रिटायर्ड फिलिप बॉन्डी भी इसी सिंड्रोम से ग्रसित थे। वे सदा अपने एक पांव को अपने सुख में बाधा मानते थे। वे अपने आपको विकलांग के रूप में कल्पना कर आत्मसुख का अनुभव करते थे। सदा इच्छा रही कि अगर उनकी एक टांग काट दी जाए तो वे पूर्ण हो जाएं। वे मैक्सिको में प्रैक्टिस कर रहे कुख्यात सेक्स चेंज प्लास्टिक सर्जन जोह्न रोनाल्ड ब्राउन के पास पहुंचे। ब्राउन पहले अमरीका में ही ट्रांसजेंडर ट्रांस सेक्सुअल (किन्नर) की सस्ते में सेक्स चेन्ज सर्जरी करते थे।
डॉ. ब्राउन के पास न इसका प्रशिक्षण था, न लाइसेंस। गड़बड़ हुई, पकड़े गए, जेल हुई। ब्राउन ने जेल से छूटने के कुछ समय बाद ही मैक्सिको में वही प्रैक्टिस शुरू कर दी। उसने फिलिप बॉन्डी की एक टांग घुटने के ऊपर से काट कर हटा दी और उसे पास के एक होटल में छोड़ दिया। बॉन्डी कमरे में मृत मिले। ब्राउन को हत्या के दोषी पाए जाने पर लंबी जेल हुई। बॉन्डी अपनी मनोग्रंथि की बलि चढ़ गया।
तनाव व अवसाद की अवस्था में बॉडी इंटेग्रिटी आइडेंटिटी सिंड्रोम हाेने का खतरा ज्यादा हाेता है इसलिए किसी भी कल्पना काे अपने उपर हावी ना हाेने दें। सकारात्मक व स्वस्थ साेच रखें।