बीपी कंट्रोल न होने से बढ़ता प्री-मैच्योर बेबी का खतरा
गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर अचानक से बढऩे लगे तो इस तकलीफ को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ब्लड प्रेशर में असंतुलन की वजह से जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा रहता है। इससे शिशु का विकास भी ठीक से नहीं होता है। ऐसी स्थिति में बीपी कंट्रोल करने की दवाएं दी जाती हैं। गर्भावस्था के चौथे से छठे माह में हाई ब्लड प्रेशर की तकलीफ होती है। इसका कारण गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल बदलाव होते हैं। इसका सीधा असर गर्भवती के शरीर और उसकी रक्त वाहिकाओं पर पड़ता है। हॉर्मोनल बदलाव की वजह से रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं जिससे ब्लड प्रेशर तेज हो जाता है।
बच्चे की सेहत पर पड़ता है बुरा असर
गर्भावस्था में जब मां को हाइ ब्लड प्रेशर की तकलीफ शुरू होती है तो मां के शरीर से बच्चे को जरूरी पोषक तत्त्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है। गर्भस्थ शिशु को प्रोटीन, कैल्शियम और शुगर की मात्रा प्रचुर मात्रा में नहीं मिल पाती है। ऐसा होने से गर्भ के भीतर बच्चे का विकास बेहतर ढंग से नहीं हो पाता है। यह स्थिति जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। जच्चा-बच्चा की जान बचाने के लिए गर्भ में पल रहे शिशु को ऑपरेशन के जरिए निकाल लिया जाता है और लंबे समय तक इंटेसिव केयर यूनिट में रखा जाता है जिससे उसका विकास नियमित समय पर होता रहे। बच्चे के जन्म के बाद हाइ-बीपी की समस्या ठीक हो जाती है।
खाने में नमक कम से कम लें
गर्भावस्था के दौरान हाइ ब्लड प्रेशर की समस्या से बचने के लिए खाने में नमक कम लेना चाहिए। नमक ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। फास्ट फूड और तली भुनी चीजों से भी परहेज करना चाहिए। इनमें मिलने वाले केमिकल्स रक्त प्रवाह को गड़बड़ाते हैं। जो महिलाएं पैक्ड फूड खाने का शौक रखती हैं उन्हें इससे बचना चाहिए क्योंकि इन्हें प्रिजर्व करने के लिए जिन केमिकल्स का इस्तेमाल होता है वे गर्भावस्था के दौरान महिला में सुस्ती और कमजोरी ला सकते हैं।
ऐसा होता स्वस्थ शिशु का शरीर
सामान्य गर्भकाल नौ महीने यानि करीब 40 सप्ताह होता है। स्वस्थ शिशु का वजन जन्म के समय 2.5 से 3 किलोग्राम के बीच होता है। बच्चे की लंबाई 52 से 55 सेंटीमीटर होनी चाहिए। जबकि उसके सिर का आकार (गोलाई) 32 से 37 सेमी. होना चाहिए।
प्री-मैच्योर बेबी
हाइ-बीपी के केस में जच्चा-बच्चा की जान बचाने के लिए प्री-मैच्योर बेबी की डिलीवरी कराई गई है तो बच्चे की खास केयर जरूरी है। जन्म के बाद बच्चे को इनक्युबेटर में रखा जाता है जो मां के गर्भ की तरह होता है। इसमें बच्चे के शरीर का तापमान संतुलित करते हैं।
सात साल तक सेहत पर नजर
हाइ बीपी की वजह से बच्चे का समयपूर्व जन्म होने पर अगले पांच से सात साल तक उसके सेहत की निगरानी जरूरी है। हर तीन महीने पर मेडिकल चेकअप होता है जिससे पता चल सके कि बच्चे का शरीर सामान्य बच्चे की तरह विकसित हो रहा है या नहीं। हड्डियों की ग्रोथ पर अधिक ध्यान दिया जाता है क्योंकि लंबाई उसी आधार पर बढ़ती है। आंखों की नियमित जांच की जाती है। किडनी, लिवर, हार्ट और फेफड़ों की स्थिति जानने के लिए खून की जांच के साथ स्कैनिंग की जाती है। सात साल के बाद अठारह साल तक हर साल पूरे शरीर की जांच करानी चाहिए।
26वें सप्ताह में ही जन्मी 455 ग्राम की बच्ची
एक गर्भवती को हाई-बीपी की समस्या थी जो दवाओं से भी कंट्रोल नहीं हो रही थी। मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के डॉक्टरों को 26वें सप्ताह में प्रसव कराना पड़ा। बच्ची का विकास गर्भ में 24 सप्ताह के अनुसार ही हुआ था क्योंकि मां के हाइ-बीपी के कारण उसका विकास बाधित हो गया था। जन्म के समय बच्ची का वजन केवल 455 ग्राम था। उसका इलाज आईसीयू, वेंटिलेटर और इनक्युबेटर यूनिट में चला। करीब 110 दिन बाद बच्चे का वजन करीब 2.5 किलोग्राम हो गया है। बच्चे के इलाज में बाल रोग विशेषज्ञ, नियोनेटोलॉजिस्ट और अन्य विशेषज्ञों की टीम शामिल थी। बच्चे को ट्यूब से सांस देने के साथ उसी से आहार भी दिया गया।
शिशु का महीने में एक किलो तक बढ़े वजन
प्री-मैच्योर बेबी का जन्म हुआ है तो एक महीने में उसका वजन 800 ग्राम से लेकर एक किलो के बीच में बढऩा चाहिए। जबकि हफ्ते में 100 ग्राम बढऩा जरूरी है। बच्चे का वजन इस अनुपात में नहीं बढ़ता है तो इसका मतलब है कि उसके शरीर में जरूरी पोषक तत्त्वों की कमी हो रही है। ऐसी स्थिति में बच्चे को जरूरी दवाएं देने के साथ मदर से फीडिंग पर अधिक ध्यान दिया जाता है। प्री-मेच्योर बेबी को जन्म देने वाली मां को खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। आहार में दाल, रोटी, हरी सब्जियां, फल, दूध, पनीर, घी समेत अन्य पौष्टिक चीजें शामिल करनी चाहिए। मां की सेहत बढिय़ा रहेगी तो बच्चे को जरूरी विटामिन और मिनरल्स मिलेंगे और उसकी अच्छी ग्रोथ होगी।
डॉ. प्रीथा जोशी, नियोनेटेलॉजिस्ट और पीडियाट्रिशियन
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