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रीढ़ की हड्डी और कमर से जुड़ी समस्याओं के लिए जान लें ये क्रियाएं

खराब जीवनशैली के अलावा समय पर आराम न करने और गलत ढंग से उठने-बैठने व झुकने के कारण कमरदर्द की समस्या बढ़ जाती है। इसमें से प्रमुख हैं लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिपडिस्क और साइटिका।

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जयपुर

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Vikas Gupta

Sep 22, 2019

रीढ़ की हड्डी और कमर से जुड़ी समस्याओं के लिए जान लें ये क्रियाएं

खराब जीवनशैली के अलावा समय पर आराम न करने और गलत ढंग से उठने-बैठने व झुकने के कारण कमरदर्द की समस्या बढ़ जाती है। इसमें से प्रमुख हैं लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिपडिस्क और साइटिका।

खराब जीवनशैली के अलावा समय पर आराम न करने और गलत ढंग से उठने-बैठने व झुकने के कारण कमरदर्द की समस्या बढ़ जाती है। इसमें से प्रमुख हैं लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, स्लिपडिस्क और साइटिका। ऐसे में मेरूदंड की चार क्रियाएं नियमित करने से इनमें लाभ होता है। इनसे दर्द में आराम मिलने के साथ ही किसी प्रकार की सर्जरी की भी जरूरत नहीं पड़ती।

स्थिति : जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैर सीधे रखें। हाथों को कंधों के समानांतर सीधे फैलाएं। इस दौरान हथेलियां जमीन से छुएं।

पहली क्रिया- दोनों पैरों के बीच थोड़ा अंतर रखते हुए पैरों के अंगूठों को आपस में मिलाएं। इस क्रिया को सांस भरकर और छोड़ते हुए करना बेहतर होता है। एक समय में इसे आप चाहें तो 5-6 बार दोहरा सकते हैं। इस दौरान कमर सीधी रखें।

दूसरी क्रिया -
दोनों पैरों के बीच इतनी दूरी रखें कि एक पैर का अंगूठा दूसरे पैर की एड़ी को छुएं। सांस लें और छोड़ते हुए पहले पैरों को बाईं ओर मोड़ें व दाएं पैर के अंगूठे को बाएं पैर की एड़ी से छुएं। गर्दन दाईं ओर मोड़ें। सांस भरते हुए प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं। इसे दाईं ओर से भी दोहरा सकते हैं।

तीसरी क्रिया -
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पैरों के बीच इतना गैप रखें कि दाईं या बाईं ओर पैरों को ले जाते समय एक पैर का घुटना दूसरे पैर की एड़ी को छुए। सांस भरें व छोड़ते हुए पैरों को बाईं ओर मोड़ें, एड़ी जमीन से छुएं, गर्दन दाईं ओर मोड़ें। दूसरे पैर से भी दोहराएं।

चौथी क्रिया -
बाएं पैर को घुटने से मोड़कर तलवे को दाएं पैर के घुटने के पास रखें। दायां पैर सीधा रखें। सांस लें व छोड़ते हुए बाएं पैर को दाईं ओर मोड़ें, बाएं पैर का घुटना व अंगूठा जमीन से स्पर्श करें। गर्दन बाईं ओर मोड़ें। सांस भरते हुए पूर्व स्थिति में आएं। ऐसा पैरों की स्थिति बदलकर भी करें।

सावधानियां -
सभी क्रियाओं को सांस लेने व छोड़ने की प्रक्रिया के साथ करें व पूर्ण स्थिति में पहुंचने के बाद उसमें कुछ देर रुकें।
क्रियाओं का अभ्यास सुबह-शाम करें।
प्रत्येक क्रिया 3 बार करें।
क्रियाओं के बाद 2-3 मिनट शवासन की मुद्रा में आराम करें।