कारण हैं कई
शुरुआत में नाखूना से तकलीफ नहीं होती लेकिन यह परेशानी धीरे-धीरे बढक़र आंख में धब्बे की तरह दिखने लगती है। इसकी वजह से आंख के चश्में का नंबर भी तिरछा आ सकता है।
आमतौर पर इसके कारणों का पता नहीं चलता लेकिन धूल-मिट्टी, सूरज की रोशनी व तेज हवा के संपर्क में आने से रोग बढ़ सकता है। अधिकांश मामलों में गर्म व शुष्क जलवायु वाले स्थानों में रहने वाले लोगों को यह समस्या अधिक होती है। कुछ मरीजों को प्राय: एलर्जी के कारण आंख में लालिमा, खुजली और पानी आने जैसी परेशानियां भी होती हैं।
नजर प्रभावित हो तो कराएं सर्जरी
नाखूना की समस्या सामान्यत: कुछ सालों में धीरे-धीरे बढ़ती है लेकिन यदि यह पारदर्शी पुतली पर ज्यादा बढऩे के साथ नजर को भी प्रभावित करने लगे तो सर्जरी को कभी भी टालना नहीं चाहिए।
नाखूना पुतली के मध्य तक आने के बाद नजर को कमजोर कर देता है जो ऑपरेशन के बाद भी पूरी तरह वापस नहीं आती। इसका इलाज सरकारी और निजी अस्पताल में उपलब्ध है। आधुनिक तकनीक से सर्जरी में करीब ८ से १० हजार रुपए का खर्च आता है।
तीन तरह से ऑपरेशन
1. सिंपल टेरिजियम एक्सीजन
इसमें नाखूना को जड़ से हटाते हैं जिससे रोग के दोबारा होने की आशंका 50 प्रतिशत तक घट जाती है। वैसे आधुनिक तकनीक आने के बाद इसका प्रयोग कम हो गया है।
2. टेरिजियम एक्सीजन विद कंजक्टाइवल लिंबल ऑटोग्राफ्ट
इसमें नाखूना को जड़ से हटाकर आंख से कंजक्टाइवल लिंबल ऑटोग्राफ्ट झिल्ली को लिंबल स्टेमसेल सहित प्रत्यारोपित कर महीन टांकों के जरिए नाखूना के स्थान पर लगाते हैं। सर्जरी में नाखूना के दोबारा होने की आशंका लगभग ५-१० फीसदी ही रहती है।
3. सूचरलेस टेरिजियम एक्सीजन विद कंजक्टाइवल लिंबल ऑटोग्राफ्ट विद फिब्रिन ग्लू
नाखूना को हटाकर उसकी जगह कंजक्टाइवल लिंबल ऑटोग्राफ्ट नामक झिल्ली लिंबल स्टेमसेल सहित प्रत्यारोपित की जाती है। इसे फिब्रिन ग्लू (मेडिकेटेड गोंद) की मदद से नाखूना के
स्थान पर चिपकाते हैं। इसमें टांकें नहीं लगते जिससे चुभन व दर्द नहीं होता। इसमें रोग के दोबारा होने की आशंका न्यूनतम रहती है। फिलहाल यह पद्धति चलन में हैं। इसमें बैंडेज कॉन्टेक्ट लैन्स का प्रयोग होता है। यह कॉन्टैक्ट लेंस की तरह होता है। इसे ऑपरेशन के बाद आंखों में लगाते हैं और 7-10 दिन बाद निकाल देते हैं। यह इंफेक्शन और धूल से बचाता है।