टीके, एन्टिजन होते हैं। टीके के रूप में दी जाने वाली दवा या तो रोगकारक जीवाणु या विषाणु की जीवित लेकिन क्षीण मात्रा होती है। कई बार इन्हें मारकर/अप्रभावी करके या कोई शुद्ध किया गया पदार्थ, जैसे प्रोटीन आदि हो सकता है।
छह साल तक के बच्चों का 15 तरह की जानलेवा बीमारियों से टीकों द्वारा बचाव किया जा सकता है। गर्भवती को टिटनेस के टीके जरूर लगवाने चाहिए, जिससे डिलीवरी के समय बच्चे को टिटनेस का डर न रहे।
दुनिया में करीब 20 लाख सालाना और देश में करीब 72 हजार बच्चों की प्रतिवर्ष असमय मृत्यु हो जाती है। असमय मृत्यु से बच्चों को बचाने के लिए पेंटावेलेंट वैक्सीन अब भारत में भी लगाई जा रही है। इस टीके से बच्चों को डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, हेपेटाइटस-बी और हिब जैसी पांच जानलेवा बीमारियों से बचाव संभव होगा। बच्चों की सुरक्षा के लिए यह टीका तीन बार लगाया जाएगा। पहला टीका शिशु के जन्म के डेढ़ माह बाद, दूसरा टीका ढाई माह बाद और तीसरा टीका साढ़े तीन माह बाद लगाया जाएगा।
भारत में गर्भवती महिलाओं और बच्चों के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में चार नई वैक्सीन को शामिल करने पर सहमति बन गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहली बार रुबेला वायरस को गंभीरता से लेते हुए इसके टीकाकरण पर ध्यान दिया है। जबकि रोटावायरस और जैपनीज इंसेफलाइटिस (जेई) के टीके को भी टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया है। अब जननी स्वास्थ्य सुरक्षा के तहत लगने वाले पांच जरूरी टीकों (डिप्थीरिया, टिटनेस, कालीखांसी, बीसीजी और हेपेटाइटिस ए व बी) के साथ चार नए टीके रुबेला, जेई, रोटावायरस, आईपीवी भी लगाए जाएंगे।
कई बार खांसी, जुकाम, निमोनिया आदि की स्थिति में बच्चे को टीका लगाना संभव नहीं होता या कभी माता-पिता टीका लगवाना भूल जाएं तो उस स्थिति में डॉक्टर वैक्सीनेशन का एक नया शेड्यूल बना देते हैं। फिर उसी हिसाब से बच्चे को टीके लगते हैं।
– डेढ़ माह की आयु में बी.सी.जी. का टीका, हेपेटाइटिस बी का पहला टीका, डी.पी.टी.का पहला टीका, पोलियो की पहली खुराक – ढाई माह की आयु में डी.पी.टी. का दूसरा टीका, हेपेटाइटिस बी का दूसरा टीका, पोलियो की दूसरी खुराक।
पोलियो की तीसरी खुराक।