‘जवानों के साथ दौड़ में रहा पीछे’
खास बातचीत में राणा ने कहा, ‘मुझे बहुत खुशी है कि देश के ‘रियल हीरो’ के साथ काम करने और उनकी जिंदगी को करीब से जानने का मौका मिला। भारत-पाक सीमा (जैसलमेर) पर जब मैं पहुंचा तो एक सिविलियन था लेकिन शूट के दौरान जिंदगी बदल देने वाला अनुभव हुआ। हर सुबह सलामी देना सीखना, हथियारों और बैगपैक के साथ ड्रिल, कई किमी की दौड़, 8 से 10 फीट की ऊंचाई से हथियारों के साथ कूदना, हर्डल जंप और उसके बाद असली कारतूसों के साथ ट्रेनिंग सूरज ढलने तक चलती। जवानों के साथ रेस में सबसे पीछे रहा था। बीएसएफ की दाल, जैसलमेर के धोरे, ऊंट की सवारी और जवानों संग बिताया गया समय याद रहेगा।
इतिहास से रू-ब-रू होने का अवसर
जवानों के साथ ऊंट पर बैठकर पैट्रोलिंग करते हुए राजस्थान के इतिहास को भी जाना। हम जैसलमेर में मुरार पोस्ट पर रहे। यह क्षेत्र कई युद्धों का गवाह है। सीमा पर जिस तरह का माहौल, तनाव और जिम्मेदारी ये जवान महसूस करते हैं, वह भी जाना। राजस्थान और जैसलमेर से जुड़े किस्से भी सुने। स्कूल में एनसीसी नेवी विंग में था, लेकिन उस वक्त पता ही नहीं था कि इस ट्रेनिंग का क्या मकसद है। बीएसएफ के साथ ट्रेनिंग कर अनुशासन के सही मायने समझा। यह शो सीमा के इन रक्षकों को सम्मान देने के लिए बनाया है, क्योंकि अक्सर देश के प्रहरियों की सेवाओं का महत्त्व हम नहीं जान पाते। (शो 21 जनवरी से discovery+ original पर प्रसारित होगा।)