मुंबई। दुनियाभर में छा गईं अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा। कह सकते हैं कि बॉलीवुड अभिनेत्री व पूर्व विश्व सुदंरी प्रियंका चोपड़ा का टाइम अच्छा चल रहा है। बॉलीवुड की दीवारों को लांघकर प्रियंका चोपड़ा ने पश्चिम में अभिनय के जो झंडे गाड़े हैं, वह काम काफी समय से हिंदी सिनेमा के धुरंधर भी नहीं कर पाए हैं। प्रियंका एक के बाद एक अमेरिकी अवॉर्ड जीत रही हैं, रेड कारपेट पर दुनिया के नामी कलाकारों के साथ तस्वीरें खींचवा रही हैं, ऑस्कर के स्टेज पर जाकर विजेता की घोषणा कर रही हैं और अब तो प्रियंका के सीवी में एक अहम बात और जुड़ गई है। उन्होंने अमेरिकी पत्रिका टाइम के 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवा लिया है।
छह कवर में से एक में प्रियंका के जलवे…
टाइम ने इस मौके पर छह कवर पेज डिज़ाइन किए हैं, जिसमें से एक पर प्रियंका चोपड़ा ने कब्जा जमाया है। बाकी पांच पर हॉलीवुड अभिनेता लियोनार्डो डी कैप्रियो, अमेरिकी संगीतकार निकी मिनाज, फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिसिला चान, अमेरिकी संगीतकार और गीतकार लिन मैनुअल मिरांडा और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड की तस्वीरें हैं।
प्रियंका की सफलता के मायने…
जहां तक बात प्रियंका चोपड़ा की है, तो उनकी सफलता का श्रेय कुछ आलोचक उनकी प्रतिभा को कम और वैश्विक स्तर पर भारतीय बाजार के बढ़ते महत्व को ज्यादा देते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो 100 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या वाले भारत देश के उपभोक्ताओं की पसंद-नापसंद को नजरअंदाज करना किसी भी व्यवसाय क्षेत्र के लिए नादानी होगी। ऐसे में किसी लोकप्रिय भारतीय चेहरे को ‘क्वांटिको’ टीवी सीरिज या ‘बेवॉच’ जैसी फिल्मों में अहम रोल देने से हॉलीवुड बहुत हद तक अपने दर्शकों का दायरा बढ़ा पाएगा, वह काम जो काफी समय से हॉलीवुड, साउथ ईस्ट एशिया में तो नहीं ही कर पा रहा है।
अमरीकी बाजार में प्रियंका की पैठ...
इस वक्त प्रियंका अपनी पहली हॉलीवुड फिल्म ‘बेवॉच’ की शूटिंग में व्यस्त हैं। फिल्म में प्रियंका के सह-कलाकार ड्वान जॉनसन ने टाइम मैगजीन में उनके लिए लिखा है कि उनमें एक ललक, महत्वाकांक्षा और आत्म-सम्मान है और वह जानती हैं कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। जॉनसन ने यह भी लिखा है कि अमेरिकी बाजार में प्रियंका को पैठ जमाते देखना काफी दिलचस्प है। जॉनसन की ही तरह वाकई में कई समीक्षकों की नजर प्रियंका के अंतरराष्ट्रीय कॅरियर पर है, खासतौर पर अब जब उनका साथ देने के लिए बॉलीवुड की एक और बड़ी हस्ती दीपिका पादुकोण भी हॉलीवुड पहुंच चुकी हैं।
मिस World और मिस Universe
देसी कलाकारों की प्रतिभा के इस ‘निर्यात’ को 90 के दशक से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जब अचानक मिस वल्र्ड और मिस युनिवर्स जैसे खिताब भारतीय सुंदिरयों के खाते में जाने लगे थे। ऐश्वर्या-सुष्मिता के बाद लारा दत्ता, प्रियंका चोपड़ा, डायना हेडन ने इस मंच पर भारत का नाम रोशन किया, लेकिन फिर अचानक इन खिताबों ने भारतीय सुंदरियों से दूरियां बना ली। विश्व सुंदरियों की लिस्ट में भारतीय नामों की बाढ़ को भी बाजारवाद का हिस्सा बताया गया था, जो काफी हद तक सही भी प्रतीत होता है, क्योंकि तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने उदारीकरण के जरिए बाहरी बाजारों के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए थे। अर्थव्यवस्था पर पैनी नजर रखने वालों के मुताबिक विदेशी कंपनियों को अपनी पैठ बनाने के लिए भारत के जाने माने चेहरों की जरूरत थी, जो काम विश्व सुंदरी जैसे मंच से हो पा रहा था।
हालांकि अमेरिका के इस ‘प्रियंका-प्रेम’ को आलोचना के चश्मे से देखने के बावजूद भी इस विश्वसंदुरी, अभिनेत्री और गायिका की प्रतिभा को कम आंकना गलती होगी। बाजारवाद की इन्हीं सब उठापटक और नफे-नुकसान के बीच अपने लिए मौके तलाशना और उसके लिए लगातार लगे रहना ही प्रियंका चोपड़ा को टाइम के कवरपेज के लायक बनाता है। प्रियंका जानती हैं उनका टाइम अच्छा चल रहा है, वह उसे गंवाना नहीं चाहतीं।
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