हीरो से ज्यादा लेते थे फीस:
फिल्मों में भले ही प्राण विलेन का किरदर निभाते हो लेकिन हीरो से ज्यादा उसका दबदबा रहता था। यही नही कई फिल्मों के लिए उन्हें हीरो से ज्यादा फीस भी मिली। सबसे मजेदार बात ये कि हर फिल्म की क्रेडिट स्क्रीन पर उनका नाम सबसे अंत में आता। वो भी इस तरह- And Pran.
बंटवारे के बाद होटल में करना पड़ा काम:
एक वक्त ऐसा भी आया जब प्राण को कुछ समय के लिए इंडस्ट्री से ब्रेक लेना पड़ा। बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले प्राण ने 1941 से 1947 के बीच कई फिल्मों में काम ? किया। लेकिन बंटवारे के बाद उनका काम भी प्रभावित हुआ जिसकी वजह से उन्हें कुछ वक्त के लिए ब्रेक लेना पड़ा। प्राण मुंबई आ गए। तब कई दिनों तक उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला। लिहाजा, उन्हें एक होटल में काम करना पड़ा।
जब अवॉर्ड लेने से किया था इनकार:
प्राण की जिंदा दिली की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। बता दें कि प्राण को फिल्म ‘बॉम्बे टॉकिज’ में एक छोटा सा किरदार निभाने का मौका मिला। इसके बाद एक बार फिर प्राण का दौर लौट आया। एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अपनी फिल्म ‘बेइमान’ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग का फिल्मफेयर अवॉर्ड लौटा दिया था। कारण यह था कि उस साल रिलीज हुई फिल्म ‘पाकीजा’ को एक भी अवॉर्ड नहीं मिला था।
एक पंजाबी परिवार में जन्में प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को हुआ था। उन्होंने करीब 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। वह 6 दशक तक फिल्म इंडस्ट्री के बेताज बादशाह के तौर पर जिये। उनकी डायलॉग डिलिवरी ने करोड़ों लोगों को मुरीद बनाया। प्राण कृष्ण सिकन्द को फिल्मफेयर से लेकर दादा साहेब फालके समेत कई अवॉर्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है। प्राण जितने संजीदा अभिनेता थे, उससे कहीं अच्छे इंसान भी।
फोटोग्राफर बनना चाहते थे प्राण:
दिल्ली में पैदा हुए प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकन्द एक सरकारी ठेकेदार थे। देहरादून के पास मशहूर कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है। अपने काम के सिलसिले में इधर-उधर रहने वाले लाला केवल कृष्ण सिकन्द के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई। प्राण फोटोग्राफर बनना चाहते थे। बतौर फोटोग्राफर उन्होंने लाहौर में अपना करियर शुरू किया। साल 1940 में ‘यमला जट’ नामक फिल्म में पहली बार उन्हें काम करने का अवसर मिला, जिसके बाद करियर की गाड़ी ने एक्टिंग की राह पकड़ ली।
महज 1 रुपये ली फीस:
प्राण उसूलों वाले एक्टर थे। उनके लिए पर्दे पर चमकने से ज्यादा महत्व उनके जिंदगी के कायदे थे। यही कारण है कि प्राण ने एक्टर और डायरेक्टर राजकपूर की फिल्म ‘बॉबी’ के लिए महज एक रुपये की फीस ली थी। दरअसल, राजकपूर ने अपनी सारी पूंजी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ पर लगा दी थी और वो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप हो गई थी। आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहे राजकपूर के लिए यह प्राण की दोस्ती थी, जो काम के आड़े नहीं आ सकती थी।
मनोज कुमार ने हीरो के रोल के लिए किया प्रेरित:
हमेशा ही विलेन का रोल करने वाले प्राण को अभिनेता और डायरेक्टर मनोज कुमार ने उन्हें विलेन के रोल से अलग हट कर रोल करने को कहा। जिसके बाद उन्होंने ही प्राण को विलेन के रोल से निकालकर पहली बार ‘उपकार’ में अलग तरह के किरदार निभाने का मौका दिया था। उसके बाद प्राण कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में उभर कर सामने आए।
‘जंजीर’ में अमिताभ से ज्यादा इनके लिए बजीं तालियां:
शेरखान के किरदार को जन्म देने वाले प्राण के लिए फिल्म ‘जंजीर’ ने अमिताभ बच्चन से ज्यादा तालियां बजीं। अमिताभ को भाले ही इस फिल्म ने‘एंग्री यंग मैन’ बनाया, लेकिन फिल्म में शेरखान के किरदार ने सिनेमाघर में सबका दिल जीता। सिल्वर स्क्रीन पर उनके डायलॉग्स पर अमिताभ के डायलॉग्स से ज्यादा तालियां बजती थीं। यह सिर्फ एक फिल्म की बात नहीं है। प्राण की हर फिल्म में उनके डायलॉग्स, एंट्री का खास खयाल रखा जाता है। प्राण फिल्म साइन करते वक्त ही यह कॉन्ट्रैक्ट करवा लेते थे कि फिल्म की क्रेडिट स्क्रीन पर उनका नाम सबसे अंत में आएगा, वो भी And Pran लिखकर।