बिपाशा ने इस पर लिखा, ‘बड़े होने के दौरान मुझे यह अकसर सुनने को मिलता था कि बॉनी, सोनी से ज्यादा डार्क है। वह थोड़ी सी सांवली है ना? मेरी मां भी डस्की ब्यूटी हैं और मैं काफी हद तक उन जैसी दिखती हूं। मुझे बिल्कुल नहीं पता कि जब मैं छोटी थी, तो दूर के रिश्तेदार इस विषय पर चर्चा ही क्यों करते थे। 15-16 साल की उम्र में मैंने जब मॉडलिंग करना शुरू किया, तो उस वक्त मैंने सुपरमॉडल कॉन्टेस्ट में जीत हासिल की थी…हर अखबार में यह लिखा गया कि कोलकाता की सांवली लड़की विजेता रही। मुझे फिर से इस बात पर आश्चर्य हुआ कि सांवलापन मेरी पहली विशेषता है?’
वह यह भी लिखती हैं, पिछले 18 सालों में मुझे फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों के कई लुभावने ऑफर आए, लेकिन मैं हमेशा अपने सिद्धांतों पर अड़ी रही। इन सबका बंद होना जरूरी है। ये जो गलत सपने हम बेच रहे हैं कि केवल फेयर ही लवली और खूबसूरत है, जबकि देश के अधिकतर लोग सांवले ही हैं। दूसरे ब्रांड्स को भी जल्द ही इन कदमों का अनुसरण करना चाहिए।
अभिनेत्री ऋचा चड्ढा लिखती हैं, नॉट फेयर बट लवली, साल 2015 में मैंने अपने टी-शर्ट में इसे प्रिंट कराया था। कल फेयर एंड लवली ब्रांड और मैं आखिरकार एक साथ इस विषय पर सहमत हुए हैं। कल उन्होंने अपने प्रोडक्ट के नाम से फेयर शब्द को हटा दिया। उन्होंने आगे लिखा, ‘मुझे लगता है कि भारत की तरह, बहुत से ऐसे देश हैं जहां अंग्रेजों ने राज किया। अक्सर ऐसे देशों में गुलामी एक मानसिक रूप भी धारण कर लेती है। हमें लगने लगता है की हमारा रंग, हमारी भाषा, हमारा खाना अच्छा नहीं है… और यही अंग्रेज हमें लगातार बताते भी थे… ये दुर्भाग्यवश है की हम अपनी ही चीजों को हीन समझकर उन्हें बदलने की कोशिश करते हैं… बचपन से यह बताया जाता है कि गोरा रंग ही खूबसूरत है! पहले तो फिल्मों में भी गाने भी यू ही बनते थे जैसे कि… हम काले हैं तो क्या हुआ दिल वालें हैं… क्या ऐसा गाना आज की डेट में बन सकता है? सब चीजों को बदलने में समय लगता है… हमें अपने रंग पर गर्व होना चाहिए!
अभिनेता अभय देओल लिखते हैं, हमें सही दिशा में ले जाने में हैशटैगब्लैकलाइव्समैटर अभियान का एक बड़ा हाथ है। लेकिन कोई गलती न करें, हमारे देश में फेयरनेस क्रीम के एंडोर्समेंट और बिक्री के संबंध में सांस्कृतिक बदलाव लाए जाने की दिशा में आप में से जो भी लोग मुखर रहे हैं, इस जीत में उनका भी योगदान है।