बचपन के दिनों से ही मजरूह सुल्तान पुरी को शेरो.शायरी करने का काफी शौक था और वह अक्सर सुल्तानपुर में हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे जिनसे उन्हें काफी नाम और शोहरत मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हुयी।
वर्ष 1945 में सब्बो सिद्धकी इंस्टीच्यूट द्वारा संचालित एक मुशायरे में हिस्सा लेने मजरूह सुल्तान पुरी बम्बई आये। मुशायरे के कार्यक्रम में उनकी शायरी सुन मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार काफी प्रभावित हुये और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फिल्म के लिये गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने कारदार साहब की इस पेशकश को ठुकरा दिया क्योंकि फिल्मों के लिये गीत लिखना वह अच्छी बात नही समझते थे।