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विधु विनोद की ‘शिकारा’ का डिजिटल प्रीमियर, संजीदा मसले पर सतही फिल्म

सोशल मीडिया पर लोगों ने शिकायत की कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो जुल्म हुए, उन पर बात करने के बजाय इस फिल्म में आम ढर्रे की प्रेम कहानी पेश की गई।

Apr 09, 2020 / 09:13 pm

पवन राणा

कश्मीरी पंडितों की फिल्म में क्यों नहीं लिया आमिर, सलमान जैसे अभिनेताओं को, विधु विनोद चोपड़ा ने बताई वजह

कश्मीरी पंडितों की फिल्म में क्यों नहीं लिया आमिर, सलमान जैसे अभिनेताओं को, विधु विनोद चोपड़ा ने बताई वजह

-दिनेश ठाकुर
कश्मीर मसले पर बनी विधु विनोद चोपड़ा की ‘शिकारा’ का हाल ही प्राइम वीडियो पर डिजिटल प्रीमियर हुआ। यह फिल्म फरवरी के शुरू में सिनेमाघरों में पहुंची थी और घाटे का सौदा साबित हुई थी। दर्शकों के मुकाबले इसके हिस्से में विवाद ज्यादा आए। सोशल मीडिया पर लोगों ने शिकायत की कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो जुल्म हुए, उन पर बात करने के बजाय इस फिल्म में आम ढर्रे की प्रेम कहानी पेश की गई।

उसी दौरान इस मीडिया पर एक लड़की का वीडियो वायरल हुआ था, जो रोते हुए विधु विनोद चोपड़ा से कह रही थी- ‘ये कॉमर्शियलिज्म आपको ही मुबारक हो, एक कश्मीरी पंडित के तौर पर मैं आपकी यह फिल्म नकारती हूं।’ इस लड़की ने ही नहीं, एक बड़े दर्शक वर्ग ने यह फिल्म नकार दी। विधु विनोद खुद कश्मीरी पंडित हैं, इसलिए उनसे कश्मीर मसले पर संजीदा और सलीकेदार फिल्म की उम्मीद तो रखी ही जा सकती है। नब्बे के दशक में जब उनकी ‘1942- ए लव स्टोरी’ के प्रदर्शन की तैयारियां चल रही थीं, वे जयपुर आए थे। बातचीत के दौरान उन्होंने कश्मीर मसले पर मणि रत्नम की ‘रोजा’ का उपहास उड़ाते हुए कहा था- ‘कश्मीर पर फिल्म कैसे बनती है, यह मैं दिखाऊंगा।’ कई साल बाद उन्होंने ऋतिक रोशन, प्रीति जिंटा और संजय दत्त को लेकर ‘मिशन कश्मीर’ (2000) बना तो दी, लेकिन यह ‘रोजा’ के आसपास पहुंचने के बजाय ‘बूम्ब्रो- बूम्ब्रो’ (भंवरे-भंवरे) तक सिमट गई।

बीस साल बाद उन्हें फिर कश्मीर की याद आई। ‘शिकारा’ बनाई और फिर मात खाई। यह छद्म फिल्म मूल समस्या से दर्शकों का ध्यान भटका कर फंतासी की ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां कश्मीरी पंडितों की पीड़ा कम, रोमांस की चाशनी ज्यादा है। किसी भी फिल्म को तर्कसंगत बनाने के लिए उसमें सहज-स्वाभाविक लय का होना जरूरी है। राहुल पंडित के उपन्यास ‘अवर मून हेज ब्लड क्लॉट्स’ पर आधारित ‘शिकारा’ में यह लय कहीं महसूस नहीं होती। दरअसल, विधु विनोद चोपड़ा उन फिल्मकारों से जरा भी अलग नहीं हैं, जो अपनी फिल्मों में एक साथ कई तरह के सवाल उठाते हैं और हर सवाल का जवाब गोल कर जाते हैं।

‘शिकारा’ में कश्मीरी पंडितों की समस्या के हरसंभव कोण के नजारे तो हैं, लेकिन हर कोण इतना आड़ा-तिरछा है कि कोई तस्वीर साफ-साफ नहीं उभरती। बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में पिछले साल धारा 370 हटने के बाद कई और फिल्मकारों ने कश्मीर समस्या पर फिल्म बनाने की तैयारियां दिखाई थीं। आनन-फानन में प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन में ‘आर्टिकल 370’, आर्टिकल 370 स्क्रेप्ड, आर्टिकल 370 एबॉलिश्ड, ‘कश्मीर हमारा है’ और ‘कश्मीर में तिरंगा’ समेत करीब दस नाम रजिस्टर्ड करवाए गए। इनमें से कितनी फिल्में बन पाएंगी, फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है।

‘शिकारा’ के खिलाफ जब लोग सोशल मीडिया पर नाराजगी का इजहार कर रहे थे, लेखक-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने ‘कश्मीर फाइल्स’ नाम से फिल्म बनाने की जानकारी दी थी। उनका कहना था कि वे इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के साथ हुए जुल्मों के हर पहलू को दिखाएंगे। विवेक अग्निहोत्री ‘चॉकलेट’ (2005), धन धना धन गोल (2007), ‘हेट स्टोरी’ (2012) और ‘बुड्ढा इन ए ट्रैफिक जाम’ (2016) सरीखी फिल्में बना चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी ‘कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को ‘शिकारा’ की तरह सतही ढंग से पेश नहीं करेगी।

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