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‘इति’ से फिर सक्रिय होंगे राजेश रोशन, लहरों की तरह यादें

राजेश रोशन ( Rajesh Roshan ) अपने बड़े भाई राकेश रोशन ( Rakesh Roshan ) की फिल्मों तक सीमित हो गए थे। तीन साल लम्बी खामोशी के बाद वे फिर सक्रिय हुए हैं और ऐसा तो सालों बाद हुआ है, जब उन्होंने बाहर के बैनर की कोई फिल्म साइन की है।

मुंबईJul 11, 2020 / 11:40 pm

पवन राणा

'इति' से फिर सक्रिय होंगे राजेश रोशन, लहरों की तरह यादें

‘इति’ से फिर सक्रिय होंगे राजेश रोशन, लहरों की तरह यादें

-दिनेश ठाकुर

एक दौर था, जब राजेश रोशन को हिन्दी फिल्मों का आखिरी मौलिक संगीतकार कहा जाता था। जिस तरह आर.डी. बर्मन ने अपनी संगीत शैली को पिता एस.डी. बर्मन की शैली से एकदम अलग रखा, उसी तरह राजेश रोशन और उनके पिता रोशन की संगीत शैली में जमीन-आसमान का फर्क है। रोशन को अगर ‘दिल जो न कहा सका’, ‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में’, ‘मन रे तू काहे न धीर धरे’ और ‘रहें न रहें हम महका करेंगे’ सरीखे रूहानी गीतों के लिए जाना जाता है तो राजेश रोशन के गीतों में ऐसी सुरीली रूमानियत है, जो दिल से दिमाग के रास्ते में कई रंगों के फूल खिला जाती है। उनकी पहली फिल्म ‘कुवांरा बाप’ (1974) की लोरी ‘आ री आ जा, निंदिया तू ले चल कहीं’ को सुनिए। लगता है, जैसे ममता को भी रूमानियत के रेशमी दुपट्टे में लपेट दिया गया हो। फिल्म-दर-फिल्म राजेश रोशन की हवा के ताजा झोंकों जैसी धुनों ने जो जादू जगाया, उससे कोई नहीं बच पाया। उनके गीत ‘जब छाए मेरा जादू’ (लूटमार) में इसी हकीकत की तर्जुमानी है। ‘जूली’ (1975) के लिए जब उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया, तब वह सिर्फ 20 साल के थे। यानी यह अवॉर्ड जीतने वाले सबसे कम उम्र के संगीतकार।

राजेश रोशन ने जब फिल्मों में सफर शुरू किया था, तब लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, आशा भौसले से लेकर सुमन कल्याणपुर तक की आवाजें उपलब्ध थीं। शायद इसलिए भी वे ज्यादा से ज्यादा जादुई धुनें रच पाए। सत्तर और अस्सी के दशक में उनका सृजन चरम पर रहा, जब ‘नजराना भेजा किसी ने प्यार का’ (देस परदेस), दिल क्या करे जब किसी को (जूली), चल कहीं दूर निकल जाएं (दूसरा आदमी), न बोले तुम न मैंने कुछ कहा (बातों बातों में), हम दोनों मिलके कागज पे दिल के (तुम्हारी कसम), परदेसिया ये सच है पिया (मि. नटवरलाल), लहरों की तरह यादें (निशान), छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा (याराना) और ‘तुमसे बढ़कर दुनिया में’ (कामचोर) जैसे दर्जनों गीत सुनने वालों के कानों में मिसरी घोलते रहे। इस सिलसिले की रफ्तार नब्बे के दशक में कम होने लगी थी। फिर भी समय-समय पर ‘जब कोई बात बिगड़ जाए’ (जुर्म), ये बंधन तो प्यार का बंधन है (करण अर्जुन) और ‘घर से निकलते ही’ (पापा कहते हैं) के जरिए वे अपनी सुरीली मौजूदगी का एहसास कराते रहे।

पिछले कुछ साल से राजेश रोशन अपने बड़े भाई राकेश रोशन की फिल्मों तक सीमित हो गए थे। तीन साल लम्बी खामोशी के बाद वे फिर सक्रिय हुए हैं और ऐसा तो सालों बाद हुआ है, जब उन्होंने बाहर के बैनर की कोई फिल्म साइन की है। फिल्म का नाम है ‘इति : कैन यू सॉल्व यूअर ऑन मर्डर’ (आजकल नामों में अंग्रेजी का छोंक लगाए बगैर काम नहीं चलता)। विवेक ऑबेरॉय के बैनर की यह थ्रिलर फिल्म विशाल मिश्रा के निर्देशन में बनेगी। फिल्म संगीत की अब जो हालत है, उसे देखते हुए राजेश रोशन से कुछ उम्मीद रखी जा सकती है, बशर्ते पिछली फिल्म ‘काबिल’ की तरह वे अपने पुराने गानों के रीमिक्स परोसने से परहेज करें।

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