दरअसल मिट्टी के घड़े की दीवारों में असंख्य सूक्ष्म छिद्र होते हैं और इन छिद्रों से पानी रिसता रहता है। जिस कारण घड़े की सतह पर हमेशा गीलापन रहता है। मटके की सतह पर छिद्र अतिसूक्ष्म होते हैं। इन छिद्रों से निकले पानी का वाष्पोत्सर्जन होता रहता है और जिस सतह पर वाष्पोत्सर्जन होता है वह सतह ठंडी हो जाती है। इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि स्प्रिट, शराब या थिनर आदि के हाथ पर लगने से ठंडक महसूस होती है।
वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में पानी की वाष्प बनती है और यह क्रिया हर तापमान पर होती रहती है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया में बुलबुले नहीं बनते हैं और वायु की गति वाष्पोत्सर्जन की दर को तेज कर देती है।
साफ है कि जब घड़े की सतह पर वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया चलती रहती है, जिससे उसकी दीवारें ठंडी रहती हैं और इसी के चलते मटके का पानी ठंडा रहता है। स्वास्थ्य के लिए भी है फायदेमंद
मटका पर्यावरण के लिए हितकारी होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के नजरिए से भी फायदेमंद है। इसमें रखा पानी पीने से गला खराब होने का डर कम होता है। क्योंकि इसके पानी का तापमान इंसान के शारीरिक तापमान के बराबर होता है।