1 अगस्त, 1932 को जन्मी मीना कुमारी एक अभिनेत्री के रूप में 32 सालों तक भारतीय सिने जगत पर छाई रहीं। बेहद भावुक और सदा दूसरों की मदद करने को तत्पर मीना कुमारी की ज़िंदगी दूसरों को सुख बांटते और दूसरे के दुख बटोरते हुए बीती थी। कमाल अमरोही के साथ, मीना कुमारी के रोमांस के किस्सों का फिल्मी जगत में अलग ही तरह को रोमांच है। यह किस्से ऐसे हैं, जो सालों से सुनाये जा रहे हैं और आगे भी सालों तक सुनाये जाते रहेंगे।
मीना ने यूं तो लव मैरिज किया लेकिन उनकी शादी ज्यादा लंबी नहीं चली। फिल्म तमाशा के दौरान उनकी मुलाकात जाने-माने निर्देशक कमाल अमरोही से हुई। जिसके बाद अमरोही ने मीना को फिल्म अनारकली ऑफर किया। फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले मीना एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं। जब अमरोही को इसकी सूचना मिली तो वह मीना से मिलने अस्पताल पहुंचे और यहीं से रिश्ते की शुरुआत हुई। अमरोही और मीना एक-दूसरे को पत्र लिखने लगे, वहीं दोनों की फोन पर भी लंबी बात होने लगी। मीना अमरोही के प्यार में इस तरह डूब गईं कि उन्होंने महज 19 साल की उम्र में निकाह कर लिया। वहीं अमरोही उस वक्त 34 वर्ष के थे और पहले से शादीशुदा इतना ही नहीं उनके तीन बच्चे भी थे, इसके बावजूद मीना ने दुनिया से छिपाकर अमरोही संग शादी रचाई।
दोनों के वैवाहिक जीवन में कुछ वक्त बाद ही दरार आ गई और दोनों एक-दूसरे से अलग हो गये। लेकिन मीना कुमारी उनके साथ काम करने के लिए हमेशा उपलब्ध थी। ये ही वजह है कि उन्होंने फिल्म ‘पाकीज़ा’ की शूटिंग पूरी करने का फैसला किया। मीना कुमारी अभिनेत्री के तौर पर भारतीय सिनेमा जगत में 32 सालों तक छाई रहीं। वो बेहद भावुक थीं। कमाल से अलग होने के बाद धीरे-धीरे उन्होंने खुद को शराब में डुबो लिया। ‘साहब बीवी और गुलाम’ ही वो फिल्म थी जिसके बाद मीना कुमारी शराब में डुबती गईं। मीना कुमारी पर किताब लिखने वाले पत्रकार विनोद मेहता ने अपनी किताब ‘मीना कुमारी: द क्लासिक बायोग्राफी’ में लिखा है कि मीना कुमारी को उनके डॉक्टर सईद टिमर्जा ने नींद की गोलियाें की जगह, रोज एक पेग ब्रांडी लेने की सलाह दी। ये सलाह इसलिए दी गई थी क्योंकि मीना कुमारी रातभर नहीं सोती थीं। उनका एक पैग कब ढेर सारे पैग में तब्दील हो जाते थे उनको भी नहीं पता चलता था। खुद कमाल अमरोही ने एक बार नौकरानी को गिलास को ब्रांडी से आधा भरते देखा, जो डॉक्टर की सलाह से भी ज्यादा था।
आख़िरी दिनों में मीना कुमारी को ‘सेंट एलिज़ाबेथ नर्सिंग होम’ में भर्ती कराया गया। नर्सिंग होम के कमरा नंबर 26 में उनके आख़िरी शब्द थे, ‘आपा, आपा, मैं मरना नहीं चाहती। जैसे ही उनकी बड़ी बहन ख़ुर्शीद ने उन्हें सहारा दिया, वो कोमा में चली गई और फिर उससे कभी नहीं उबरीं। सावन कुमार टाक बताते हैं, ”जिस दिन उनकी मौत हुई, मैं वहाँ मौजूद था। उनको बाएकला कब्रिस्तान में दफ़नाया गया। सब लोग उनके पार्थिव शरीर पर मिट्टी डाल कर जा चुके थे। मैं ही आख़िरी बंदा बचा था।”