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शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा आवश्यक क्यों, यहां लीजिए ज्ञानपरक जानकारी

नंदी ने शिव शंकर का घोर तप किया और शिव को प्रसन्न करके हमेशा उनके सानिध्य की मांग की | भगवान शंकर ने पार्वती की के साथ अपने सभी गणों के बीच नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर बने

बदायूंNov 01, 2018 / 07:35 am

धीरेंद्र यादव

shiva

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शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की। शिलाद मुनि ने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर एक अजर अमर और कीर्तिवान पुत्र की कामना की । इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता प्रकट की और इसके लिए शिव भक्ति के तप का मार्ग बताया |

भगवान शंकर शिलाद मुनि के कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया और नंदी के रूप में प्रकट हुए। शंकर के वरदान से नंदी मृत्यु से भय मुक्त था । मुनि ने उन्हें ज्ञान की शिक्षा दी |

एक दिन दो संत उनके आश्रम में आये और नंदी की सेवा देख कर उनके चेहरे उतर गये | शिलाद मुनि ने जब इसके पीछे का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की आपका पुत्र अल्पायु है | नंदी यह बात सुनकर हँसने लगे और उन्होंने अपने पिता को बताया कि भगवान शंकर ही उनकी उम्र बढ़ाएंगे |

ऐसा कह कर नंदी ने शिव शंकर का घोर तप किया और शिव को प्रसन्न करके हमेशा उनके सानिध्य की मांग की | भगवान शंकर ने पार्वती की के साथ अपने सभी गणों के बीच नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर बने और सबसे खास गणों में शामिल हुए । शिव शंकर ने अपने इस गण को यह भी वरदान दिया कि उनके साथ हमेशा नंदी रहेगा | यही कारण है की शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा जरूर लगाई जाती है |

नंदी के नेत्र सदैव अपने इष्ट को स्मरण रखने का प्रतीक हैं, क्योंकि नेत्रों से ही उनकी छवि मन में बसती है और यहीं से भक्ति की शुरुआत होती है। नंदी के नेत्र हमें ये बात सिखाते हैं कि अगर भक्ति के साथ मनुष्य में क्रोध, अहम व दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य न हो तो भक्ति का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता।

नंदी के दर्शन करने के बाद उनके सींगों को स्पर्श कर माथे से लगाने का विधान है। माना जाता है इससे मनुष्य को सद्बुद्धि आती है। यह दोनों सींग ज्ञान और विवेक के मार्ग पर चलने का सन्देश देते है | नंदी के गले में एक सुनहरी घंटी होती है। जब इसकी आवाज आती है तो यह मन को मधुर लगती है। घंटी की मधुर धुन का मतलब है कि नंदी की तरह ही अगर मनुष्य भी अपने भगवान की धुन में रमा रहे तो जीवन-यात्रा बहुत आसान हो जाती है।
प्रस्तुतिः डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित, प्राध्यापक

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