वाहन चालक कहते हैं कि इस नए नियम से उन्हें आपत्ति इसलिए है कि जब वाहन में स्पीड कंट्रोल डिवाइस लगा दी जाएगी तो वे इमरजेंसी में वाहन को तेज नहीं चला पाएंगे, जिससे दुर्घटना होने की संभावना भी कई बार टेकओवर करते समय बन सकती है। वहीं दूसरी तरफ अगर उन्हें किसी मरीज को लेकर हॉस्पिटल जाना है तो स्पीड कंट्रोल डिवाइस उनके लिए बाधक साबित हो सकती है। जिसकी वजह से हो सकता है कि उनका मरीज समय से हॉस्पिटल ना पहुंच पाए जिससे जनहानि भी हो सकती है। इसे लेकर तमाम ट्रांसपोर्टर्स में गुस्सा देखा जा रहा है।
ट्रांसपोर्टर्स की मानें तो डिवाइस का खर्चा काफी ज्यादा है और इसके लगने के बाद कई बार जब वाहन को टेकओवर करते हैं तो स्पीड नियंत्रित नहीं रह सकती। स्पीड बढ़ानी पड़ जाती है, लेकिन अगर ऐसे वक्त पर वाहन को ओवरटेक करने के लिए स्पीड बढ़ाई जाती है, लेकिन जब स्पीड नहीं बड़ा पाएंगे तो भी दुर्घटना होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। वाहन मालिकों और चालकों का कहना है कि अगर इस तरह से डिवाइस रहेगी तो या तो मध्यम गति पर वाहन को चलाना पड़ेगा नहीं तो दुर्घटनाएं हो सकती हैं। फिलहाल डिवाइस को लगाने वाले डीलर्स में इसे लेकर उत्साह देखा जा रहा है क्योंकि उन्हें नए आदेश के बाद बैठे बिठाये एक उत्पाद बेचने का मौका मिल गया है। डीलर्स इसके फायदे गिनाने में मशगूल हैं। वे इससे तेल की बचत तक का गणित समझाने में लगे हैं।
इस बारे में एआरटीओ प्रशासन मोहम्मद कयूम का कहना है कि यह शासन का आदेश है। दुर्घटनाओं पर काबू पाने के लिए स्पीड डिवाइस का उपयोग जरूरी है। जब वाहन में स्पीड डिवाइस या स्पीड गवर्नर रहेगा तो इससे वाहन चालक लिमिट में चलेगा और वह किसी भी वक्त वाहन पर नियंत्रण कर सकता है। कयूम कहते हैं कि जल्द ही इसका पालन सुनिश्चित कर दिया जाएगा। अपना बचाव करते हुए एआरटीओ ने कहा कि यह हमारी प्लानिंग नहीं है। बल्कि शासन स्तर से जो आदेश आया है। हमें वह मानना है और बिना स्पीड कंट्रोल डिवाइस के किसी भी वाहन को फिटनेस सर्टिफिकेट अब जारी नहीं किया जाएगा।