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बूंदी

यहां दहेलवालजी की सवारी देख सब हो जाते है आश्चर्यचकित, जानें क्या है ऐसा अनोखा

आंतरदा में करीब 142 साल से चली आ रही परम्परा

बूंदीAug 28, 2020 / 11:12 pm

Abhishek ojha

यहां दहेलवालजी की सवारी देख सब हो जाते है आश्चर्यचकित, जानें क्या है ऐसा अनोखा

यहां दहेलवालजी की सवारी देख सब हो जाते है आश्चर्यचकित, जानें क्या है ऐसा अनोखा

करवर. क्षेत्र के आंतरदा गांव में शुक्रवार को दहेलवालजी की देहरूपी सर्प की सवारी गाजे बाजे के साथ निकाली गई। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते सीमित आयोजित हुआ। देहरूपी सर्प की सवारी के श्रद्धालुओं ने घरों के बाहर से दर्शन किए। दोपहर करीब दो बजे पंच पटेल तथा राज परिवार के सदस्य वीर बहादुर सिंह, अभिषेक सिंह, मानवेंद्र सिंह के नेतृत्व में नियत स्थान तलवास रोड़ पर स्थित दड़ा के भैरूजी स्थान के समीप गाजे-बाजे के साथ चवंर, ढोल, गद्दी, झालर, केवड़ा, बाजोट, झण्डी, छड़ी व अन्य पूजा के सामान लेकर पहुंचे। जहां दहेलवालजी देहरूपी सर्प के रूप में हिंगोटिया के पेड़ पर मिले। पंच पटेलों ने पूजा व साथ चलने की मान मनुहार की। यह दौर करीब आधे घण्टे तक चलता रहा। इस दौरान तेजाजी गायन मंडलियां अलगोजों व लोक वाद्ययंत्रों की धुनों पर तेजाजी गायन करती रही। श्रद्धालु जयकारे लगाते रहे। राज परिवार के सदस्यों ने फूलों से पूजा कर साथ चलने की विनती की। इसके बाद देहरूपी सर्प भोपा प्रभुलाल कीर के साफे में आ गए। इसी के साथ ही महाराज के जयकारे गूंजने लगे। भोपा व उनके सहयोगी साथी देहरूपी सर्प को लेकर सवारी के रूप में रवाना हुए। जो परकोटे बालाजी मार्ग होते हुए बड़ा दरवाजा होकर गढ़ चौक पहुंचे। मार्ग में जगह जगह श्रद्धालुओं ने दहेलवालजी महाराज की पूजा अर्चना के साथ दर्शन किए। बाद में गढ़ के अंदर राज परिवार के सदस्यों ने महाराज के दर्शन किए तथा सलामी देकर अगवानी की। सवारी करवर रोड स्थित दहेलवाल जी के थानक पहुंची। जहां दहेलवालजी की देह को एक वृक्ष पर छोड़ा गया।
इसलिए आते है आंतरदा में दहेलवालजी महाराज
वर्ष 1871 में तत्कालीन आंतरदा रियासत में देवीसिंह की पत्नी जो जुन्या (टोंक) की राजकुमारी थी। उन्हें किसी सर्प ने डस लिया था। तब उन्हें जुन्या के दहेलवालजी की तांती (डस्सी) बांधी गई थी। बाद में आंतरदा के ठिकानेदार ने दरबार ने तेजादशमी पर रानी को तांती कटवाने जुन्या भेजा। उनके साथ गांव के लोक कलाकार भी गए। संगीत मंडली व दरबार की भावना को देखकर दहेलवालजी खुश हो गए। किवंदती के अनुसार तब आंतरदा में दहेलवालजी का थानक बनाया गया। उनको आंतरदा के लिए न्योता भेजा गया। स्वीकृति दी तो दहाडय़ा नामक स्थान पर वर्ष 1878 में स्थानक बनाया गया। तभी से आंतरदा में तेजादशमी के दिन देहरूपी सर्प के रूप में आने की परम्परा शुरू हो गई। इस परंपरा को करीब 142 साल हो गए।

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