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बूंदी में चम्बल की जर्जर नहरों से कैसे पहुंचेगा अंतिम छोर तक पानी

सरकार के लाख दावों के बाद भी जिले में चम्बल की नहरों के हाल नहीं सुधरे। अब फिर पानी छोडऩे का वक्त आ गया। तारीख भी तय हो गइ्र्र, लेकिन इस बार तो सफाई का काम तक पूरा नहीं हुआ।

बूंदीOct 07, 2020 / 11:46 am

Narendra Agarwal

बूंदी में चम्बल की जर्जर नहरों से कैसे पहुंचेगा अंतिम छोर तक पानी

बूंदी में चम्बल की जर्जर नहरों से कैसे पहुंचेगा अंतिम छोर तक पानी

बूंदी. सरकार के लाख दावों के बाद भी जिले में चम्बल की नहरों के हाल नहीं सुधरे। अब फिर पानी छोडऩे का वक्त आ गया। तारीख भी तय हो गइ्र्र, लेकिन इस बार तो सफाई का काम तक पूरा नहीं हुआ। ऐसे में अंतिम छोर तक पानी पहुंचना मुश्किल होगा। नहरों के हालातों को लेकर किसानों के अनुभव पहले से ही अच्छे नहीं रहे। केशवरायपाटन और कापरेन ब्रांच केनाल में अंतिम छोर के किसानों के लिए तो मानो पानी मिलना अमृत समान हो गया। बीते वर्ष भी किसानों ने अंतिम छोर तक पानी पहुंचाने के लिए लंबा संघर्ष किया, तब पानी पहुंचा और रेलाना हो सका। लेकिन जब गेहूं की सिंचाई के लिए अंतिम पानी की आवश्यकता हुई तो फिर किसान हो-हल्ला करते रह गए। पानी नहीं पहुंचा। कुछ जगहों पर नहरों की वितरिकाओं के हिस्से क्षतिग्रस्त हुए थे। देखने पर उनके हाल एक साल बाद भी वैसे ही दिखाई दिए। कई स्थानों पर तो पक्की दीवारें टूटकर माइनरों में गिर गई। जो जल प्रवाह के दौरान रुकावट पैदा करेंगी। इन हालातों में किसानों की माने तो पानी छोडऩे की तारीख से पहले नहरों की सफाई हों। माइनरों में अवरोध पैदा करने वाले पत्थर और झाड़-झंखाड़ हटें। बूंदी ब्रांच केनाल के हाल भी किसी से छिपे नहीं रहे। नहर की वितरिकाएं कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो रही। पत्रिका टीम की रिपोट…र्।
मरम्मत की दरकार
केशवरायपाटन. चंबल सिंचित क्षेत्र की बायीं मुख्य नहर की पाटन व कापरेन ब्रांच, वितरिकाओं का स्वरूप दिनों दिन बिगड़ता जा रहा। जीर्णोद्धार के अभाव में लगातार मिट्टी कटाव के चलते नहरों की लम्बाई व चौड़ाई बिगड़ चुकी। कहीं नहरें कट गई तो अधिकतर जगहों पर जंगल उग आया। जब नहरों में जलप्रवाह किया जा रहा तो पचास फीसदी तो व्यर्थ ड्रेनों में बह रहा।
बायीं मुख्य नहर की कापरेन व पाटन ब्रांचों से दो तहसीलों में 14 डिस्ट्रीब्यूटरी, 96 माइनर निकल रहे। इनकी लंबाई 594.69 किलोमीटर है। इनसे कहने को तो 57828 हैक्टेयर में सिंचाई होती है, लेकिन खराब नहरों के अंतिम छोर के किसान पानी के लिए तरसते रहते हैं। किसानों की लिए जीवनदायिनी के लिए आया बजट भी सिंचाई विभाग खर्च नहीं कर पाया।
नहरों को पक्का करने का काम अधरझूल में लटका हुआ है। नहरों को पक्का करने का कार्य वर्ष 2013-14 से चल रहा है, लेकिन 6 सालों में यह कार्य ठेकेदारों के बीच फुटबॉल बना हुआ है। ठेकेदारों की उदासीनता एवं मनमानी की वजह से स्वीकृत राशि भी खर्च नहीं हो रही। एक ठेकेदार को तो सीएडी को ब्लैक लिस्ट करना पड़ा। इन हालातों में फिर से किसानों की चिंता बनी रहेगी।


बूंदी ब्रांच : केनाल में नाम मात्र की हुई सफाई
रामगंजबालाजी. बूंदी ब्रांच केनाल से जुड़ी वितरिकाओं व मायनर की सफाई का कार्य 5 दिन में कैसे होगा, इस बात को लेकर संशय पैदा हो गया।
केनाल के अभी हाल जलप्रवाह शुरू करने जैसे नहीं हुए। केनाल से जुड़ी वितरिकाओं व माइनरों के हालात भी ठीक नहीं रहे। अंधेड़, दौलाड़ा, ओंकारपुरा, खटकड़, रायता, लालपुरा, कुआंरती, गोवर्धनपुरा, दयालपुरा, माटंूदा, किशनपुरा की स्थिति जर्जर हो रही। इन वितरिकाओं व माइनरों में कई जगह पर कराए गए पक्के निर्माण धराशायी हो गए। जिले के प्रभारी मंत्री ने दस अक्टूबर से किसानों को देखते हुए नहरों में पानी छोडऩे की घोषणा तो कर दी, लेकिन इन बूढी नहरों की दशा सुधारने की ओर जिम्मेदारों की नजर नहीं जा रही। किसानों की माने तो कई जगहों पर उगे बबूल तक नहीं हटे। किसानों से खरीफ की फसल को बचाने के लिए कई स्थानों पर ओहड़े लगा रखे जिनकी सफाई नहीं हो रही। ऐसे में रबी की फसल के लिए छोड़ा जाने वाले पानी को लेकर किसान चिंतित रहेंगे। वर्तमान समय में नहरों की सफाई नहीं हुई तो इनसे जुड़े टेल क्षेत्र में पानी पहुंचाना प्रशासन के लिए चुनौती भरा होगा। किसानों ने बताया कि इस बार पर्याप्त पानी नहीं बरसा, ऐसे में अधिक पानी की मांग होगी। जानकार सूत्रों ने बताया कि नरेगा श्रमिकों को लगातर नहरों की सफाई का काम बढ़ाया जाना चाहिए।
व्यवस्थित तरीके से नहरों को चलाया जाएगा।
शैलेन्द्र व्यास, अधिशासी अभियंता, सीएडी

करोड़ों खर्च फिर भी नहीं सुधेरे हालात
बडाखेडा. टेल क्षेत्र के दर्जनों गांवों के किसान आज भी खेती पर निर्भर है। इस बार मानसून ने धोखा दे दिया, खरीफ की फसल तो हुई नहीं, लेकिन रबी की फसल से कुछ उम्मीद लगाए बैठे हैं। टेल क्षेत्र के गांवों में नहर की स्थिति बेहद खराब ही नहीं चिंता जनक है। क्योंकि नहरों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपए का बजट खर्च होने के बाद भी हालात नहीं सुधरे। किसानों की माने तो सीएडी विभाग नहरों पर ध्यान नहीं दे रहा। बीते वर्ष भी काम उस वक्त कराए गए जब नहरों में पानी छोड़ा जाना था। ऐसे में ठेकेदारों ने घटिया काम कर इतिश्री कर ली। बाद में काम के पानी में बहने का अभियंता बहाना बनाते रहे। अभी कई स्थलों पर तो विलायती बबूल और झाडिय़ां उग आए। अन्तिम छोर तक अभियंता सफाई का भले दावा करें, लेकिन हालात किसी से छिपे नहीं।

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