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बूंदी

पर्यावरण में जहर घोल रहा पॉलीथिन, हर रोज हो रहा उपयोग

सब जानते हैं पॉलीथिन पर्यावरण के लिए जानलेवा है। बावजूद इसके प्रतिबंध पॉलीथिन का धड़ल्ले से बाजारों में इसका उपयोग किया जा रहा है।

बूंदीJul 18, 2018 / 12:52 pm

Nagesh Sharma

Environmental poisoning of polyethylene, everyday use

Shopkeeper selling plastic-polythene will take up to a million fines

बूंदी. सब जानते हैं पॉलीथिन पर्यावरण के लिए जानलेवा है। बावजूद इसके प्रतिबंध पॉलीथिन का धड़ल्ले से बाजारों में इसका उपयोग किया जा रहा है। सब्जी मंडी, किराना दुकान, फल ठेलों पर खुले में पॉलीथिन बिक रही है। जिम्मेदार अधिकारी जानकर भी अनजान बैठे हैं।जबकि इसका उपयोग करने पर जुर्माने से लेकर सजा का प्रावधान है।
प्रतिबंधित पॉलीथिन का शहर में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। या यंू कह दे कि इस पर बैन होने के बाद भी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। विदेशी पावणे भी पॉलीथिन को लेकर कई बार संदेश दे चुके हैं। बावजूद इसकी कारवाई को लेकर अधिकारी मौन बैठे हंै। नगर परिषद के कर्मचारी भी छोटी-मोटी दुकानों पर कार्रवाई कर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर लेते हैं। जानकार लोगों ने बताया कि अकेले बूंदी शहर में ही रोज एक क्विंटल पॉलीथिन का उपयोग हो रहा है।

हर तरफ परेशानी, रोके कौन
हर तरफ पॉलीथिन का उपयोग हो रहा है। इसके खाने से मवेशियों का जीवन संकट में पड़ रहा है। नालियां पॉलीथिन के कचरे से अटी पड़ी हैं। यही नहीं वार्ड-मोहल्लों व गलियों में लगने वाले कचरे के ढेर में अधिकतर पॉलीथिन ही जमा हो रही है। यहां सवाल यही उठता है कि इसका उपयोग रोके तो कौन।

गायब हो गए कागज व कपड़े के थैले
पहले घरों में कपड़े का थैला हुआ करता था। घर से निकलते समय थैला ही निकाला जाता था, लेकिन अब थैले मिलना मुश्किल हो गए।लोग कागज के थैले का उपयोग इसलिए नहीं करते क्योकि उसमें हैंडल नहीं होता। फटने के डर के चलते लोग सुविधा को देखते हुए पॉलीथिन का ही प्रयोग करते हैं।

जी का जंजाल बनी पॉलीथिन
भारत में रोज औसतन 20 गाय पॉलीथिन खाने से मरती हैं। इससे खेती आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश में पशुधन को हो रहे नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्ष 2002 में पॉलीथिन पर रोक तो लगाई गई लेकिन उसका अब तक पालन नहीं हुआ है। इस ओर कोई ध्यान नहीं देता।

राजकीय महाविद्यालय, बूंदी केएसोसिएट प्रोफेसर, ओ.पी. शर्मा का कहना है कि प्लास्टिक अजैव अपघटनीय है, अर्थात इसका जीवाणु कवक आदि सूक्ष्मजीव अपघटन नहीं कर सकते। पॉलीथिन की थैलियां नालियों को एवं जल स्रोतों को अवरुद्ध कर रही हैं।ये मिट्टी में एकत्र होने पर उसकी उर्वरा शक्ति को क्षीण कर देती है। पॉलीथिन मवेशियों के पेट में जमा हो जाती है उन्हें मरना पड़ता है। आज का युग पॉलीथिन या प्लास्टिक युग होता जा रहा है। हम प्लास्टिक उपयोग के आदि हो गए हैं। इनके निर्माण, उपयोग व फेंकने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

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