जब रक्त बन गया जीवनरक्षक
कहते हैं रक्तदान महादान होता है। इसके दान से किसी का जीवन बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ बरथा बावड़ी निवासी जगरूप सिंंह रंधावा ने २० वर्ष की उम्र में पहली बार रक्तदान कर गरीब परिवार के मुखिया की जान बचाई थी। रंधावा बताते हैं कि परिचितों के माध्यम से उनके पास फोन आया था। कोटा में एक गरीब परिवार के ब्लड के लिए भटकने की सूचना पर तुंरत अस्पताल पहुंचे। परिवार का दर्द देखा तो रहा नहीं गया और उसी दिन से मन में ठान लिया कि जरूरतमंद लोगों को ब्लड देना है। ३८ वर्षीय रंधावा ३५ से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं। उनके इसी सेवा और जज्बे को देखकर विश्व रक्तदान दिवस पर उन्हें सम्मान से नवाजा भी जाएगा।
कहते हैं रक्तदान महादान होता है। इसके दान से किसी का जीवन बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ बरथा बावड़ी निवासी जगरूप सिंंह रंधावा ने २० वर्ष की उम्र में पहली बार रक्तदान कर गरीब परिवार के मुखिया की जान बचाई थी। रंधावा बताते हैं कि परिचितों के माध्यम से उनके पास फोन आया था। कोटा में एक गरीब परिवार के ब्लड के लिए भटकने की सूचना पर तुंरत अस्पताल पहुंचे। परिवार का दर्द देखा तो रहा नहीं गया और उसी दिन से मन में ठान लिया कि जरूरतमंद लोगों को ब्लड देना है। ३८ वर्षीय रंधावा ३५ से अधिक बार रक्तदान कर चुके हैं। उनके इसी सेवा और जज्बे को देखकर विश्व रक्तदान दिवस पर उन्हें सम्मान से नवाजा भी जाएगा।
दूसरों के दर्द को अपना समझा
३५ से अधिक बार रक्तदान करने वाले चर्मेश शर्मा बताते हैं कि शुरू से समाज सेवा का शौक रहा है। कॉलेज में एनएसएस जॅवाइन किया उसी की बदौलत सबसे पहले १९९८ में रक्तदान किया। पहली बार समझ आया कि रक्त की हर बूंद लोगों की जिदंगी के लिए कितने मायने रखती है। खुद से संकल्प लेते हुए इस महादान की शुरुआत अपने जन्मदिन से की। शहर में पहली दफा १०० यूनिट रक्त ब्लड बैंक में जमा करवाया। उसके बाद सिलसिला जारी रहा। अब एक गु्रप बनकर तैयार हो गया है। जब भी किसी को रक्त की जरूरत पड़ती है तो गु्रप के सदस्य दौड़ पड़ते हैं।
३५ से अधिक बार रक्तदान करने वाले चर्मेश शर्मा बताते हैं कि शुरू से समाज सेवा का शौक रहा है। कॉलेज में एनएसएस जॅवाइन किया उसी की बदौलत सबसे पहले १९९८ में रक्तदान किया। पहली बार समझ आया कि रक्त की हर बूंद लोगों की जिदंगी के लिए कितने मायने रखती है। खुद से संकल्प लेते हुए इस महादान की शुरुआत अपने जन्मदिन से की। शहर में पहली दफा १०० यूनिट रक्त ब्लड बैंक में जमा करवाया। उसके बाद सिलसिला जारी रहा। अब एक गु्रप बनकर तैयार हो गया है। जब भी किसी को रक्त की जरूरत पड़ती है तो गु्रप के सदस्य दौड़ पड़ते हैं।
खून खून की कमी से जूझना पड़ता है ब्लड बैंक कोबूंदी जिले में प्रतिदिन ३५ यूनिट खून की जरूरत है। उपलब्धता सिर्फ २० यूनिट की हो पाती है। ब्लड बैंक के पास ब्लड की पूर्ति नहीं होने से कई बार संकट का सामना करना पड़ता है। थैलेसीमिया बच्चों को हर माह तो कई बार महिने में दो बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है। उसके बाद भी अस्पताल प्रशासन की मंशा होती है कि जरूरतमंद लोगों को ब्लड चेरिटी पर दिया जाए। गर्मी के दिनों में अधिक परेशानी होती है। इस बार भी ब्लड बैंक में ऐसे ही हालात हुए जब माहेश्वरी समाज ने अपनी भागीदारी निभाई और रक्त की कमी को दूर किया। हालांकि रक्तदान के लिए लोग कतार में है, लेकिन ब्लड की पूर्ति नही हो रही।
मन से प्रेरणा जागेगी तब ही रक्त की कमी पूरी हो सकेगी। कुछ लोग ही स्वेच्छा से रक्तदान कर रहें हैं। संस्थाओं को भी आगे होना। लोग अपने व बच्चे के जन्मदिन और शादी की सालगिरह पर रक्तदान करें।
लक्ष्मीनारायण मीणा, प्रभारी ब्लड बैंक एवं लैबोरेट्री
लक्ष्मीनारायण मीणा, प्रभारी ब्लड बैंक एवं लैबोरेट्री
थैलेसीमिया बच्चों को हर महिने ब्लड देना पड़ता है। अभी उतनी पूर्ति नही हो पा रही हैै। कई बार ब्लड की कमी से जूझना पड़ता है। शहर के कई युवा रक्तदान कर इस कमी को पूरा करते है। ब्लड बैंक में ब्लड कंपोनेट यूनिट के बाद व्यवस्था में सुधार होगा।
हनुमान शर्मा सीनियर लैब टेक्नीशियन ब्लड बैंक प्रभारी
हनुमान शर्मा सीनियर लैब टेक्नीशियन ब्लड बैंक प्रभारी