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बूंदी

अनोखा रिश्ता है मथुराधीश और बूंदी के गोपाल का…

एतिहासिक धरोहरों का गढ़ है छोटी काशी, कई प्राचीन मंदिर आज भी है आस्था का केन्द्र- कई रूपों में दर्शन दे रहे गिरधर गोपाला…

बूंदीSep 03, 2018 / 11:15 pm

Suraksha Rajora

janmashtami 2018 The celebrity market decorated heritage Kashi, Girdha

अनोखा रिश्ता है मथुराधीश और बूंदी के गोपाल का…

बूंदी. छोटी काशी को प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों का गढ़ कहा जाता है। यहां ऐसी कई इमारतें, मंदिर, महल है, जिनकी कलाकृति अपनी अलग पहचान रखती है। जन्माष्टमी के तहत गली-गली में गिरधर गोपाल की तर्ज पर भगवान कृष्ण के अनेक रूप और नाम की प्रतिमा विद्यमान है। जिसे गोपाल लाल महाराज, रंगनाथ महाराज, केशव मंदिर कृष्ण उपासकों का प्रमुख तीर्थ, बूंदी की चित्र शाला में भागवत पुराण के आधार पर कृष्ण की लालाओं के चित्र सहित रघुवीर भवन में बिहारी मंदिर संम्प्रदाय आदि है।
वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में गोपाल मंदिर अपनी अलग पहचान रखता है। करीब १५० साल पहले कोटा के पाटनपोल स्थित मथुराधीश और बूंदी के गोपाल लाल महाराज दोनो एक साथ बूंदी विराजते थे लेकिन एक सेवा कोटा वालो ने ले ली और एक बूंदी ने। वर्तमान में स्थापित मंदिर की सेवा मुखिया मधु सुदन के जिम्मे है।

रावला का चौक में विराजे रंगनाथ


दारु-गोला रंगजी का
मदद मीरा साहब की
फतह हाड़ा राव की
अमन चैन जनता का।


बूंदी में सम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल के रूप में रंगनाथ जी महाराज और मीरा साहब के जयकारे लगते थे। दोनो के मंदिर पूर्व में आमने सामने थे। हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल दूर दूर तक कायम रहती थी। अमन चैन के लिए लोग यही नारा लगाते थे। रंगनाथ महाराज रामानंद सम्प्रदाय बूंदी के इष्ट देव है। बूंदी के दरबार इन्ही के नाम से काम करते थे।
रंग जी का चमत्कार ऐसा था कि कार कूंज उन्ही की सेवा होती थी। बताया िजाता है कि दरबार में एक समय जब कारकूंज के पहुंचने से पहले ही रंगनाथमहाराज वेष बदल कर बहीखाते पर साइन कर दिए। जब कारकूंज पहुंचे तो उन्होनें दरबार से क्षमा मांगी लेकिन दरबार ने कहा कि आप तो समय पर ही आए जब बहीखाता देखा तो सोने की स्हायी से हस्ताक्षर हो रहें थे तभी से उन्होनें श्री रंगनाथ जी की सेवा ले ली। जन्माष्टमी पर्व पर यहां जनसहयोग से राशि एकत्रित कर भव्य रूप से जनमाष्टमी मनाई जाती है।

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