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बाजारीकरण से खतरे में लोक संस्कृति, जानिए क्यों चिंतित हैं विद्वान

‘राजस्थानी लोकगीतों में युगबोध’ विषय पर परिसंवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया।

बूंदीAug 19, 2018 / 04:40 pm

धीरज शर्मा

Public culture in danger from the market, know why are worried scholar

बाजारीकरण से खतरे में लोक संस्कृति, जानिए क्यों चिंतित हैं विद्वान

बूंदी. साहित्य अकादमी नई दिल्ली की ओर से संस्कृति संस्था के सहयोग से महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण की धरती ‘बूंदी’ पर देवनारायण मंदिर परिसर स्थित सभागार में ‘राजस्थानी लोकगीतों में युगबोध’ विषय पर परिसंवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें प्रदेशभर से लोकगीतों के कवि और साहित्यकार शरीक हुए। वक्ताओं ने एक स्वर में दोहराया कि हमारी लोक संस्कृति के गीतों को बचाया जाना चाहिए। इनका संरक्षण होना चाहिए। आज बदलते दौर में लोक गीत अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। सरकार इन्हें लिपिबद्ध कराए।

उद्घाटन सत्र में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल साहित्य अकादमी के संयोजक मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कार्यक्रम पर प्रकाश डाला। उद्घाटन साहित्यकार सोहनलाल चारण ने किया। बीज भाषण श्रीलाल मोहता ने दिया। अध्यक्षता साहित्यकार व कवि मुकुट मणिराज ने की। मध्याह्न बाद प्रथम सत्र शुरू हुआ। जिसकी अध्यक्षता कमला कमलेश ने की। देवकी दर्पण ने राजस्थानी लोकगीतों में जीवन-दर्शन और मदन सैनी ने कृषि-संस्कृति पर अपना आलेख प्रस्तुत किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता भंवर सिंह सामौर ने की। राजस्थानी लोकगीतों में युगबोध विषय पर अंबिका दत्त एवं सामाजिक समरसता का सुर विषय पर हरीश बी. शर्मा ने विस्तार से प्रकाश डाला। समापन सत्र में नगर परिषद सभापति महावीर मोदी, जय सिंह आसावत, दुर्गादान सिंह एवं घनश्याम लाडला मंचासीन रहे। संयोजक राजकुमार दाधीच ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया। संस्कृति संस्था की अध्यक्ष शालिनी विजय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। गोरस प्रचंड, चंदालाल चकवाल, मदन सैनी, जगदीश, सोहनदान चारण ने भी संबोधित किया।

क्या कहते हैं साहित्यकार
साहित्यकार अम्बिकादत्त चतुर्वेदी ने बताया कि बूंदी के आस-पास समृद्ध लोग हैं। लोक चेतना को ठीक से समझना होगा। हाड़ौती में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा है। इन गीतों को लिखा जाना चाहिए। इन्हें रिकॉर्ड किया जाना चाहिए। अभी तक सिर्फ सर्वे का काम हुआ, लेकिन इस सर्वे की व्यापकता की जरूरत है। आज धीरे-धीरे बाजारीकरण हो रहा है। लोक संस्कृति खतरे में है। इसके लिए बूंदी की संस्थाएं आगे आए। कोटा के विश्वविद्यालय इस विषय पर सोचे।

इंटेक सचिव व वरिष्ठ अधिवक्ता राजकुमार दाधीच ने बताया कि आज द्विअर्थी गीतों के बढ़ते प्रचलन पर सभी ने चिंता व्यक्त की है। हमारे प्राचीन लोकगीत समाप्त हो रहे हैं।

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