प्रत्येक बाघ परियोजना को 2 भागों में बनाया जाता है। पहला भाग कोर और दूसरा बफर क्षेत्र होता है। कोर क्षेत्र वह भाग होता है, जो बाघों को स्वच्छंद विचरण क्षेत्र होता है और यहां किसी तरह का व्यवधान नहीं रखा जाता है। यहां जंगल का घनत्व भी सबसे अधिक रहता है। वहीं दूसरा भाग बफर क्षेत्र वह स्थान होता है, जो कोर क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र के बीच का भाग होता है। यहां जंगल का घनत्व कोर क्षेत्र की तुलना में कम होता है। रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में दो कोर क्षेत्र बनाए गए हैं। इसमें एक कोर रामगढ़ विषधारी अभयारण्य का 225.62 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र रखा गया है। वहीं दूसरा कोर चम्बल अभयारण्य का 256.28 वर्ग किलोमीटर को रखा गया है। ऐसे में करीब 500 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कोर क्षेत्र रहेगा। इसी तरह बूंदी, हिण्डोली, डाबी, भीलवाड़ा का क्षेत्र मिलाकर करीब 1019.98 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र बफर रखा है।
राष्ट्रीय चम्बल घडिय़ाल अभयारण्य के क्षेत्र को टाइगर रिजर्व के कोर में शामिल करने से इस क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ गई है। यहां लगातार अवैध खनन और मत्स्याखेट हो रहा था। इससे चम्बल को दोहन होने के साथ ही सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा था। इसके साथ ही कई बार रणथम्भौर से निकलकर बाघ चम्बल नदी से होते हुए मुकुंदरा की ओर गए हैं। जिससे यह क्षेत्र रणथम्भौर-रामगढ़ से मुकुंदरा के बीच कॉरिडोर के रूप में काम करता है। इसके चलते इसे कोर में लिया गया है। ताकि बाघों का आना-जाना निर्बाध रूप से जारी रह सके। गौरतलब है कि वर्ष 2003 में ब्रोकन टेल रामगढ़ होते हुए दरा अभयारण्य पहुंचा था। इसी तरह हाल ही में बाघ टी-98 भी चम्बल नदी से होते हुए मुकुंदरा हिल्स पहुंचा था।
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य का इतिहास काफी पुराना रहा है। राजा-रजवाड़ों के समय से यह जंगल बाघों का बसेरा रहा था। बाघों को निहारने के लिए जंगल के बीच में रामगढ़ महल बनाया गया था। जिसके झरोखों से मेज नदी और काफी दूर तक जंगल को देखा जा सकता है। वर्ष 1982 में इसे अभयारण्य का दर्जा दिया गया। इस समय भी यहां बाघों की मौजूदगी थी, लेकिन बाघों के शिकार काफी बढऩे लगे थे। इस दौरान वर्ष 1991 में वन विभाग ने बाघों के शिकारी रंगलाल को गिरफ्तार किया था, लेकिन 26 जनवरी 1991 को हिरासत में रंगलाल की मौत हो गई थी। इसके बाद यहां लोगों ने वन विभाग के कर्मचारियों को जंगल में नहीं घुसने दिया और लगातार कटान और शिकार करते रहे। इसके चलते धीरे-धीरे रामगढ़ विषधारी अभयारण्य से बाघों सहित अन्य वन्यजीवों का शिकार हो गया और जंगल को काफी नुकसान पहुंचा। समय के साथ-साथ जब विभाग ने फिर से जंगल की सुरक्षा करनी शुरू की तो यह फिर से आबाद होने लगा और बाघों का रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से यहां आना-जाना भी शुरू हो गया, जो अब तक जारी है।
रामगढ़ में बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यहां बाघिन को शिफ्ट करना है। यहां बाघों का लगातार आवागमन रहा है, लेकिन बाघिन की मौजूदगी नहीं होने से यहां बाघों की आबादी बढऩे में रुकावट रही। ऐसे में टाइगर रिजर्व में सबसे पहले बाघिन को ही लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए रामगढ़ महल के पीछे के क्षेत्र में 5 हैक्टेयर भूमि पर एनक्लोजर बनाने का काम कुछ दिनों में ही शुरू हो जाएगा। इसके लिए मौके पर साफ-सफाई कराई गई है। विभाग के अनुसार बाघिन को कुछ दिन जंगल के अनुकूल होने के बाद खुले में छोड़ दिया जाएगा। यहां पहले से ही एक बाघ टी-115 मौजूद है।
रामगढ़ का वन क्षेत्र – 207.22 वर्ग किलोमीटर
रामगढ़ का राजस्व क्षेत्र – 18.40 वर्ग किलोमीटर
बूंदी में चम्बल अभयारण्य – 19.47 वर्ग किलोमीटर
कोटा में चम्बल अभयारण्य – 26.04 वर्ग किलोमीटर
बूंदी मंडल का वन क्षेत्र – 727.02 वर्ग किलोमीटर
भीलवाड़ा का वन क्षेत्र – 95.48 वर्ग किलोमीटर
आलोकनाथ गुप्ता, उप वन संरक्षक, वाइल्डलाइफ कोटा